Saturday, August 29, 2009

जब कोई बात अटक जाए

बता क्या करा जाए जब कोई बात आपस में बातो बातो में अटक जाए तो। चाह कर भी ज़ल्द उसकी आवाज़ दबी नही जा सकती। कई बार येसा होता है की सामने वाला बिना सोचे जो बोल गया उसका क्या असर होगा वह तो बोलने के प्रवाह में कह जाता है मगर सुनने वाले पर जो असर होती है उससे वह बेखबर ही रह जाता है। अगर समाये पर भाव पकड़ ले तो मामला बन सा जाता है। लेकिन येसा न हुवा तो आपसी ताना तनी शरू हो जाती है। आप चाहें तो मिसुन्देर्स्तान्डिंग कह सकते हैं। और यह सुलझ सकता है ब्शेरते की बात चित हो वो भी खुले मनन के साथ। मगर येसा कम हो पता है, अकसर पूर्वाग्रह बने बनाये काम को मिटटी में मिला देता है। होता बिल्कुल अलग है मामला और भी ख़राब हो जाता है।
कई बार मान लिया जाता है की वो तो येसा ही है येसा ही सोचता है हमें चाहिए यह की ज़रा उसकी जगह रख कर ख़ुद को परख लिया जाए।

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