दरसल अतीत के संग चिपक कर रहा नही जा सकता।अतीत को समझा ही जा सकता है। ताकि आगे की सीख ली जा सके। अतीत में अटकी चेतना कभी भी किसी भी देश समाज और आदमी के लिए बेहतर नही होता। अतीत को तो ठीक ही किया जा सकता है।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
Monday, September 1, 2008
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शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
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