Thursday, November 3, 2016

गुनगुनी धूम में चलों कविता कहानी पकाएं


कौशलेंद्र प्रपन्न
दिसंबर का अंतिम पखवाड़ा। आप सभी की स्कूल की छुट्टियों के दिन। आप में से कुछ बाहर घूमने भी जाओगे। कुछ अपने घर में रहेंगे। सर्दी की धूम कितनी प्यारी लगती है जब धूम में बैठकर संतरे, मूंगफली,मूली खाते हो। वैसे ही हम इस धूम में कविता और कहानी सेकेंगे।
आपकी दादी,नानी या दादा, पापा-मम्मी कहानी जरूर सुनाती होंगी। आपको अच्छी भी लगती हैं। ज़रा सोचो आप भी कविता और कहानी बनाओ, बुनो और पका कर मम्मी पापा को सुनाओगे तो कितनी खुशी होगी। अगर चाहते हो कि आप खुद की लिखी कविता और कहानी बुनो तो कुछ जरूरी बातों को ध्यान में रखना होगा।
पहले अपने आस-पास यानी परिवेश को ध्यान से देखो और महसूस करो कि वे आपसे जैसे बातें कर रही हों। कि जैसे अपने बातें आपसे साझा करने के लिए उतावले हो रहे हों। जैसे आपके आस-पास की सर्द हवा, फूल, चिड़िया, पेड़, पार्क में घूमती उड़ती पत्तियां आदि। ये सब आपसे कुछ कहना चाहती हैं। सुनने के लिए उनके पास जाओ। धीरे से उन्हें सहलाओ। देखोगे कि वे पत्तियां आपसे बतियाने लगी हैं।
जब उनके करीब जाओ तो अपने साथ अपनी जेब में कुछ शब्दों को भी लेकर जाओ। जो आप देख और महसूस रहे हो उसे अपने शब्दों में कहने और गुनगुनाने की कोशिश करो। यहीं से कोई कोमल कहानी या कविता निकलेगी। जैसे सर्दी आई सर्दी आई/ओढ़े ठंढ़ की सर्दी आई। वर्दी पहने सर्दी आई। या फिर ऐसी दूसरी पंक्तियां आपको कानों में बजने लगेंगी। पत्तियों को उड़ते, खड़खड़ाते आपने देखा और सुना उन्हें शब्द देना चाहो तो कुछ यूं हो सकता- पत्तियां यूं उड़ती हैं ज्यों उड़ते हैं धूंध घनेरे। खड़खड़ करती पत्तियां आईं/साथ में पत्तियां लाईं। आगे आप खुद कविता को जन्म दे सकते हो। कविताएं ऐसी ही तो बनती और पकती हैं। हमारे आस-पास की चीजें पता नहीं कब कविता में समाने लगती हैं। आप भी बुनो न कोई सुंदर सी कविता।
जहां तक बात कहानी की है तो कहानियां शब्दां के कंधे पर चढ़कर आपतक आती हैं। आपको दूर कहीं ख्यालों में, कल्पनाओं में ले जाती हैं। आपको भी कहानी की दुनिया में अपने दोस्तों को ले जाना है तो बुनों एक अपनी नई कहानी। जैसे एक दिन घास सुबह सुबह बहुत खुश थी। खुश थी कि उसके माथे पर ओस की चमकती बूंदें थीं। सुबह की रोशनी में हीरे की तरह चमकती धूम बेहद खुशी थी। आपकी कहानी फूलों, चिड़ियों पर भी हो सकती है। एक और देखते हैं कहानी की शुरुआत, चिड़ियां चहक चहक कर मिट्टी के कटोरे में रखे पानी में नहा रही थी। पास में ही दाना चुगती दूसरी चिड़िया देख रही थी और बार बार उड़ती और वापस दाना खा कर फिर फिर उड़ जाती।
कहानी या कविता बुनने पकाने के लिए शब्दों की जरूरत पड़ती है जैसे रेटी बनाने के लिए आटा। आपके पास भी शब्द तो होंगे ही। अगर कम हैं तो मम्मी-पापा, दादा-दादी, नान-नानी, दोस्तों या फिर स्कूल में अपनी मैम या सर से मांग सकते हो कि मुझे इस पर कविता लिखनी है कुछ शब्द सुझाएं। अब आपके पास शब्द हैं, पेड़, चिड़िया, सर्दी की धूम, गुनगुनी दुपहरी है। साथ ही खाने को मूली, गाजर,मूंगफली आदि हैं। इन्हें खाते रहो और कविता, कहानी भी पका लो। जब स्कूल खुलें तो इन्हें अपनी जेब में, यादों में लेकर जाना मत भूलना। अपने दोस्तों से जरूर बांटना। आपके दोस्त ही नहीं बल्कि मैम, मम्मी पापा भी सुन कर कह उठेंगे वाह! क्या कहानी पकाई है। इसे चाहो तो किसी पत्रिका और अखबार में भी छपने के लिए भेज सकते हो।



No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...