Tuesday, May 26, 2015

उर्दू कहां हो


पिछले दिनों पूर्वी दिल्ली नगर निगम के उर्दू शिक्षकों के लिए एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में तकरीबन 11 प्रतिभागियों की सहभागिता रही। यूं तो पूर्वी दिल्ली नगर निगम में उर्दू माध्यम में पढ़ाने वाले कम से कम 1000 शिक्षक हैं। उनमें से सिर्फ ग्यारह का आना अपने आप में चिंता का विषय है। जो आए थे उसकी खुद की उर्दू की समझ जिस स्तर की थी उसे देखकर अंदाजा लगाना कठिन नहीं था कि इनके द्वारा कक्षा में किस संजीदगी के साथ उर्दू पढ़ाई जाती होगी। हमलोग अक्सरहां तमाम रिपोर्ट के हवाले से कहते रहते हैं कि कक्षा 6 ठीं व आठवीं में पढ़ने वाले बच्चों को कक्षा 2 री व तीसरी की भाषायी समझ और गणित की दक्षता नहीं है। यहां तो एम ए और बी एड किए हुए उर्दू शिक्षकों का आलम यह था कि उन्हें यह भी नहीं मालूम था कि उर्दू में कितने वर्ण होते हैं और तलफ्फुज़ कैसे दुरुस्त करें। बच्चों को अलिफ, बे, पे ते से आदि वर्णों को कैसे पढ़ाएं यह तो दूर की बात है। किसी भी भाषा के कौशलों की जब बात की जाती है कि उसके चार कौशलों की बात किए बगैर हम आगे नहीं बढ़ सकते। सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना। उर्दू शिक्षण में अल्फाजों को कैसे बोलें, लिखें और पढ़ेंइ न कौशलों के विकास के लिए शिक्षक अभी अभी पुरानी तरकीबें ही अपना रहे हैं। गौरतलब है कि दिल्ली में उर्दू माध्यम के स्कूल और शिक्षकों की ख़ासे कमी है। उर्दू माध्यम के शिक्षकों की नियुक्ति 1990 के बाद नहीं हुई।
बतौर एक अध्यापिका अब बच्चे उर्दू माध्सम से पढ़ना नहीं चाहते। वजह बताती हैं कि कई बार हमारे पुराने बच्चे जो अब छठीं व आठवीं में आ चुके हैं वे बताते हैं कि उन्हें उर्दू में पढ़ाने वाला कोई नहीं है। विज्ञान, गणित, समाज विज्ञान को उन्हें हिन्दी माध्यम में पढ़ाया जाता है उन्हें कुछ भी समझ नहीं आता। यह एक बड़ा कारण है कि बच्चे तो बच्चे बच्चों को अभिभावक खुद अब नहीं चाहते कि उनका बच्चा उर्दू माध्यम से तालीम हासिल करे। क्योंकि जैसे जैसे बच्चे दर्जें में दाखिल होता है उन्हें उर्दू माध्यम में तालीम मुहैया नहीं कराई जातीं। ऐसे में बच्चों हतोत्साहित होते हैं।

No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...