Wednesday, January 14, 2015

बाजार 11 बजे की



कौशलेंद्र प्रपन्न
सोम- बाजार,वीर- बाजार,मंगल- बाजार, बुध-बाजार आदि इस तरह से हर दिन का बाजार दिल्ली के विभिन्न इलाकों मंे लगा करती हैं। इन बाजारों की ख़ासीयत यह है कि इस बाजार में लोग 9-10 बजे के बाद जाना चाहते हैं। जब दिल्ली के बाहर लोग आधी नींद ले चुके होते हैं तब दिल्ली वाले सब्जी-फल आदि लेने निकलते हैं। इतनी देर रात बाजार जाने के कारण स्पष्ट है सब्जियां-फल सस्ती मिला करती हैं। यही कारण है कि बड़ी बड़ी गाडि़यों से उतर कर झोले भर कर पूरे हप्ते की खरीद्दारी करते लोग मिल जाएंगे। इस बाजार का अर्थशास्त्र यह भी है कि जितना देर से जाओ चीजें उतनी ही सस्ती मिलती हैं। दुकानदार को दुकान बढ़ाकर घर जाना होता है इसलिए जो सब्जी 8-9 बजे 40 रुपये की मिलती है वह 11 बजे 15 और 20 रुपये की मिलने गलती है।
गांव देहात में आज भी हप्ते में एक दिन बाजार लगा करता है। नाम बेशक हाट, पीठ हो सकते हैं। उन बाजारों में महिलाएं,बच्चे, बड़े सभी जाते हैं। कपड़े, खाना-पीना, श्रंगार की चीजें भी बिका करती हैं। उत्तराखंड़ में ऐसे बाजारों को पीठ कहा जाता है। याद है जब मैं गुरुकुल कांगड़ी में पढ़ा करता था तब हरिद्वार से पांच किलो मीटर पहले ज्वालापुर और बीएचईएल में पीठ लगा करता था। पहली बार यह शब्द सुना था। जब बाजार गया तो अपने पुराने बाजार की छवि उभरने लगी। बाजार में सारी चीजें इतनी सस्ती थीं कि आम बाजार में उन्हीं चीजों की कीमत कम से कम दुगनी जरूर थीं।
इन बाजारों की आर्थिकी प़़क्ष पर नजर डालें तो पाएंगे कि सामान इसलिए सस्ती मिला करती हैं क्योंकि दुकानदार माल सीधे मंड़ी से उठाया करते हैं। इसमें कोई बिचैलीए भूमिका नहीं होती। हप्ते में एक दिन लगने वाले इस बाजार में क्या नहीं होता। हर वो जरूरत की चीजें मिल जाएंगी जिनके लिए हम लोग माॅल या बड़ी बड़ी दुकानों में जाया करते हैं। खाने- पीने से लेकर पहनने- ओढ़ने, साज-सज्जा, किचन, अचार,बर्तन-बासन सब कुछ। एक ओर छोले भटूरे वालेे की दुकान होती है तो उसी से लगे जलेबी वाला भी खड़ा होता है। किसी की भी दुकान खाली नहीं होती है। सब्जियां सस्ती तो मिलती हैं साथ ही ताजी भी होती हैं।
बाजार तो बाजार ही होती है। यदि बाजार में चाक चिक्य ना हो तो बाजार क्या है। गीत गाने की सीडी,डीवीडी जो अन्य जगह 50-80 रुपये में मिलती हैं यहां पर 10 और 20 रुपये में उपलब्ध होती हैं। चार-पांच फिल्में एक सीडी में मिलती हैं। समग्रता में देखें तो यह बाजार गाड़ी वालों के लिए पैसे बचाने की जगह होती हैं। लेकिन वहीं दूसरी ओर कम आमदनी वाले परिवारों के लिए यह बाजार वरदान के रूप में होती हैं। यह वही बाजार है जिसमें हमारे घरों में काम करने वाली रूबी, अनीता, रानी जाती हैं वहीं उन्हें घरों के मालिक भी जाया करते हैं। जब दोनों आमने सामने पड़ते हैं तो स्थिति अजीब हो जाती है। रूबी बोलती है आप भी यहीं से चीजें खरीदती हैं? यानी उस वर्ग के लिए तो यह बाजार सहज है लेकिन दूसरे वर्ग बाबुओं के लिए उनके स्तर और नाक की दृष्टि से उनकी नजरों में नहीं जंचता।
अमीर हो या गरीब हर व्यक्ति चीजें सस्ती में ही खरीदना चाहता है। पैसे बचाना कौन नहीं चाहता। यही वजह है कि दिल्लीवासी सोने के समय में कटौती कर साप्ताहिक बाजार में जाया करते हैं। लंबी लंबी महंगी गाडि़यों से उतर कर सब्जी-फल की दुकान में मोल भाव करते लोग नजर आए जाएंगे। कभी प्रोफेसर, बैक मैनेजर, पत्रकार,बिजनेसमैन सभी इस बाजार में नियमित खरीद्दार होते हैं। कुछ ऐसे भी अवसर आते हैं जब हम अपने पड़ोसी से भी इसी बाजार में मिला करते हैं। यह बाजार वही स्थान है जहां लड़के-लड़कियां भी नजरे बचा कर मिलती हैं। माॅल में मिलना जिनकी पहंुच से बाहर है वो लोग इस बाजार में मिलते हैं। यह बाजार अपनी पूरी उमंग पर तब होती है जब रात 10 बजते हैं।
हप्ते के हप्ते के लगने वाले इस बाजार में गरीबों के घर अच्छे से चलते हैं। साथ ही दूसरे वर्ग के लोगों के लिए चीजें सस्ती हो लगती हैं। बाजार का अपना चरित्र और प्रकृति होती है। बाजार में हर वर्ग के लिए चीजें उपलब्ध होती हैं। हर व्यक्ति की जरूरत की चीजें उसकी जेब के हिसाब के उपलब्ध होती हैं। यही बाजार दर्शन यहां इन बाजारों में भी देखने को मिलता है। जब इस बाजार में हर चीजें उपलब्ध हैं तो क्यों एक समाज के एक बड़ा तबका माॅलों, महंगी दुकानों में खरीद्दारी किया करता है। क्योंकि उन्हें अपनी हैसीयत, रूतबा बड़े- बड़े नामी- गिरामी ब्रांड के कपड़ों, जूतों,पहनावे आदि से दिखानी होती है। वह इन बाजारों में खरीद्दारी करना अपनी तौहीन समझते हैं। उन्हें लगता है इस तरह के बाजार में मजदूर एवं मध्यम वर्ग के लोग आया करते हैं।
मार्केट ऐट 11 दरअसल समाज के बड़े वर्गों के लिए लाभप्रद है। जहां कम से कम मौसमी सब्जियां-फल आदि खरीद सकते हैं। अपने बच्चों के शौक भी इस बाजार में पूरे होते हैं। नए नए पहनावे, चश्में,खाना-पीना,प्रसाधन के अन्य सामान जेब की सीमा में मिल जाते हैं। जिस तरह से गली-मुहल्लों, काॅलोनियों में जेनरल स्टोर खुल रहे हैं वहां की भीड़ बिल्कुल अलग है। यह बाजार कभी बंद नहीं होने वाले क्योंकि यह बाजार आम जनता के लिए, आम जनता के द्वारा संचालित होता है।


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