Thursday, June 6, 2013

जि़या के ग़म में 12 साला लड़का भी उसी के राह पर
कौन कहता है कि बच्चों में संवेदना नहीं होती। बच्चे खाली स्लेट होते हैं। जो चाहो लिख दो। पढ़ा दो। जि़या ख़ान की आत्महत्या की घटना से हताहत एक 12 वर्षीय बच्चा जो 5 वीं कक्षा में पढ़ता था उसने आत्महत्या कर ली। यह घटना राजस्थान की है।
एक कहानी हरिसुमन विष्ट जी की है जिसमें जो जिक्र करते हैं कि किस तरह विज्ञापनों के होडिंग्स बच्चों के लिए मौत के रास्ते बन कर आते हैं। सच भी है विज्ञापनों, फिल्मी चक्कर में तो अच्छे-अच्छे दिमागदार लोग पड़ जाते हैं तो वह तो महज 12 साला बच्चा ठहरा।
क्या उसे जि़या से प्रेम था? क्या वह उससे शादी करना चाहता था? क्या वह जि़या को सपने में रोज देखा करता था? ये सवाल अब तो उसी के संग चले गए। तमाम सवाल अनुत्तरित। लेकिन हम नागर समाज के सामने वह बच्चा एक बड़ा सवाल जरूर छोड़ गया कि हम नागर समाज में बच्चे किस तरह पल-बढ़ रहे हैं। पर्दे की दुनिया और हकीकत की दुनिया में हम बुनियादी अंतर समझा पाने में कहीं न कहीं विफल हो रहे हैं।

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