Friday, April 13, 2012

शिक्षा के अधिकार कानून के आगे हार गई पब्लिक लामबंद

शिक्षा के अधिकार कानून यूँ तो लागू हुवे कुछ साल यानि २००९ में , बीत गए. लेकिन सरकारी स्कूल को छोड़ कर पब्लिक स्कूल और केंद्रीय विद्यालय आदि इसकी परिधि से बाहर थे. पब्लिक स्कूल के तर्क थे की हम इस स्थिथि में नहीं है की २५ फीसदी गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ा सकें. सरकार की और से दिए ऑफर किये पैसे २१०० रूपये काफी नहीं लगा उन्हें. 
आखिरकार न्यायालय की और से फहल हुई और अब पब्लिक स्कूल को भी अपने यहाँ २५ फीसदी गरीब साधन हीन बचों को शिक्षा देनी पड़ेगी. 
बहस यह भी उठ रही है की क्या गरीब माँ बाप उस बच्चे के बाकि स्कूल के खर्च वहां कर पायेंगे? क्या गारंटी है की ये बच्छे कुछ दिने के बाद द्रौप आयुत में शामिल हो जाएँ?
जो भी हो कम से कम अवसर तो मिला. बुनियादी तालीम तो हाथ में आई. ग्लोबल एक्शन वीक हर साल २३ लस २८ अप्रैल को मनायाजता है. इस के पीछे युद्श्य ग्लोबल कोलितिओं आफ एदुकतिओन पर दुनिया के तमाम नेतायों ने दस्थ्खत किया था की २०१५ तक हम सभी बच्चे के (० से ६ साल के उम्र)  बुनियादी शिक्षा दे दी जायेगी. हकीकत जो भी हो अभी भी लाख से ज्यादा बच्छे स्कूल से बहार हैं.            

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