बाबा जहाँ देहरादून के हस्पताल में थे ठीक उसी जगह इक निगमानंद नाम के युवा साधू भी भर्ती था। दोनों के काम इक से थे। जहाँ बाबा भारस्ताचार के खिलाफ लोगों की नज़र में थे वही वो अनाम सा निगमानंद गंगा में गलत उत्खनन को रोकने के लिए पिछले तक़रीबन १०० दिनों से भुख्हद्ताल पर था। लेकिन कितने लोग इस नाम को जान पाए। हलाकि मीडिया ने ही निगमानंद को भी लाइट में लाया जो कहीं उपक्ष के शिकार थे। न तो राज्य सरकार और न ही केंद्र ने निगमानंद के हड़ताल को तवज्जो दिया।
अफ़सोस के साथ ही कहना पड़ता है कि लोग नाम से भीख देते हैं तो दान भी। मरने पर रोने वाले आखं भी बॉडी की प्रतिष्ट पर उसी मात्र में आशुं बहाते हैं।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
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शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
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