बाबा ने अपनी भद पीता कर रो क्यों पड़े... यह रास्ता खुद ही चुना था। हजारे की रह पर चलना इतना आसान नहीं। पूरी ज़िन्दगी लग जाती है तब हजारे पैदा होते हैं। बाबा ने रार ठान ली कि मैं क्यों नहीं लोकपाल समिति में? मुझे भी कम लोग नहीं जानते। पूरी दुनिया में जान्ने वाले हैं फिर मैं क्यों पीछे रहूँ।
बस यही वो प्रस्थान बिंदु है जहाँ से बाबा की बिछलन शुरू हुई। किसे तरह वो औरतो के पीछे छुपते रहे इसे पूरी दुनिया ने देखा। भक्तो की भीड़ कड़ी कर उनने सोचा कि हम सत्ता से भीड़ लेंगे। सरकार को समर्पित मंत्री बाबा की शक्ति जानते थे इस लिए पहले मनुहार किया। लेकिन नहीं मने तो दंड का प्रयोग किया।
साम, दम, दंड, भेद इन चार बिन्दुयों को अपना कर ब्रिटिश ने हमारे ऊपर राज किया। तो बाबा किसे खेत की मुली हैं।
योग करते , जनता वैसे ही अपने दिलों में बसा राखी थी। बाबा को राजनीती का चस्का पता नहीं किसे ने लगा दिया। वैसे उन्न्ने कोई गलत कदम नहीं उठाया था। लेकिन मंच गलत चुना। उस पर रिथाम्भारा को बैठना आग में घी डालना साबित हुआ।
चलिए इक लम्बी सांस ले और छोड़ें.......
आमीन
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
Monday, June 6, 2011
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