Monday, June 6, 2011

बाबा की भद

बाबा ने अपनी भद पीता कर रो क्यों पड़े... यह रास्ता खुद ही चुना था। हजारे की रह पर चलना इतना आसान नहीं। पूरी ज़िन्दगी लग जाती है तब हजारे पैदा होते हैं। बाबा ने रार ठान ली कि मैं क्यों नहीं लोकपाल समिति में? मुझे भी कम लोग नहीं जानते। पूरी दुनिया में जान्ने वाले हैं फिर मैं क्यों पीछे रहूँ।
बस यही वो प्रस्थान बिंदु है जहाँ से बाबा की बिछलन शुरू हुई। किसे तरह वो औरतो के पीछे छुपते रहे इसे पूरी दुनिया ने देखा। भक्तो की भीड़ कड़ी कर उनने सोचा कि हम सत्ता से भीड़ लेंगे। सरकार को समर्पित मंत्री बाबा की शक्ति जानते थे इस लिए पहले मनुहार किया। लेकिन नहीं मने तो दंड का प्रयोग किया।
साम, दम, दंड, भेद इन चार बिन्दुयों को अपना कर ब्रिटिश ने हमारे ऊपर राज किया। तो बाबा किसे खेत की मुली हैं।
योग करते , जनता वैसे ही अपने दिलों में बसा राखी थी। बाबा को राजनीती का चस्का पता नहीं किसे ने लगा दिया। वैसे उन्न्ने कोई गलत कदम नहीं उठाया था। लेकिन मंच गलत चुना। उस पर रिथाम्भारा को बैठना आग में घी डालना साबित हुआ।
चलिए इक लम्बी सांस ले और छोड़ें.......
आमीन

No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...