जाहिर से बात है कि बड़े तो बड़े उपक्षित होते हैं साथ ही बच्चे भी हाशिये पर दल दिए जाएँ तो इसमें अचरज की कोई बात नहीं। दिल्ली में पिछले साल २०१० में बाद के ९ माह में २१६८ बच्चे लापता हो गए। वो बच्चे कहाँ गए? किसे हाल में हैं ? हैं भी या नहीं किसी को मालुम नहीं। सरकार तो यैसे ही उची सुनती है। जनता को अपने घर, नून तेल लकड़ी से फुर्सत नहीं की वो सड़क के बछो के चिंता करें।
गौरतलब है कि २०१० के अक्टूबर में इक रपोर्ट आई थी जिसमे बड़ी संजीदगी से बता गया था कि दुनिया भर के ८० मीलियन बच्चे आज भी भूख, सुरक्श, और बड़ों के हवास के शिकार होते हैं। यूँ तो भारत में हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार कानून लागु हो चुका है लेकिन सच या है कि बच्चे जो स्कूल छोड़ देते हैं वो डूबा शिक्षा से जुड़ नहीं पाते।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
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शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
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