Sunday, March 7, 2010

सम्मान के इक दिन बाकि हैं.....

सम्मान के लिए इक दिन है विमेंस डे के नाम पर। लेकिन बाकि के साल भर जो भी करें वो माफ़। साल भर हम उनको हाशिये पर धकेल कर सुकून महसूसते हैं। हर संभव कोशिश करते हैं उनको आगे न आने दिया जाये। लेकिन वो तो उनकी लगन और जुनून है कि लाख रुकावट के बावजूद वो आगे आ रही हैं। तो यैसे में उनकी इज्ज़त के साथ लोकतान्त्रिक बेहैवे करना चाहिय।
लेकिन अक्सर यही होता है कि जहाँ भी मौका मिलता है हम उन्हें नीची जगह ही बैठते रहने के लिए जुगत भिड़ते रहे हैं। पर किसी को ज़यादा दिन तक रोक नहीं सकते। आज आलम यह है कि वो चाहती हैं हर जगह, हर मोड़ पर मजबूत कदम रखना। यैसे में हमारी जिम्मेदारी बनती है कि उनको रास्ता दें। वर्ना वो दिन क्या दूर है जब आप को उसे रह देने कि जगह उन से मांगना होगा।
आज लड़कियां हर जगह अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही है। उनको लाइफ में अब पुरुषों की जुररत नहीं रही। साफ कहती है जीवन में राहगीर प्यारा हो तो उसपर तंगने की जगह मजबूत बने।

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