Friday, December 5, 2008

दिसम्बर की वो तारीख

आज तक़रीबन सोलह साल बीत चुके मगर घटना वहीं की वहीं खड़ी लगती है। तमाम मीडिया की नज़र यूपी के अयौध्या पर टिकी थी। सारा देश शर्मसार था। मगर इक जोर ने उस येतिसाहिक धरोहर को हमेशा के लिया नस्तानाबुत कर दिया।
आज उसी की वारसी है। वारसी तो मनायेजयेगी लेकिन उस यस्थल पर उडे धुल में लिपटी सचाई को क्या भुला या जा सकता है ? नही ज़नाब यह वो घटना थी जिसके टिश सदा के लिए समय के साथ चलेगी।
कुछ कंदील कुछ आसूं , चाँद बयां के बाद यही इस घटना के साथ होगा जो ....





No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...