किस पर नही दिख रहा है मंदी का असर? सभी लोग चाहे वो छोटे रेतैलेर हों या बड़ी कंपनी सभी अपने यहाँ इसी का रोना रो रहे हैं। लोगों को बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। यैसे में हर कोई डरे समाहे हैं। किस की गर्दन कटेगी कोई नही जानता।
जो लोग शादी करने वाले थे वो ज़ल्दी में कर रहे हैं ताकि अची लड़की मिल सके। नौकरी छुटने के बाद कोई नही पूछेगा। दहेज़ भी कम मिलेंगे।
दूसरी तरफ़ चहरे उदास हैं। काम में मनन नही लगता
प्यार में रोटी , नौकरी और लोगों के सवाल घिर गए हैं। क्या खाक प्यार के धुन कोई कैसे सुन सकता है। बाज़ार के चौतरफा मार को समझने के लिए अर्थ शास्त्र के साथ समाज शास्त्र को भी समझने होंगे। मनोबिगायण भी पढ़ना होगा।
क्या कुछ नही प्रभावित होता है। घर से लेकर दफ्तर तक काम से लेकर जीवन तक सब इस समय मंदी के निचे आ गए हैं।
बाज़ार जीवन रेखा को तै कर रही है। उधर सेंसेक्स पर उतर चढ़ होता है इधर जीवन के अहम् फैसले लिए जाते हैं।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
Sunday, December 7, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...
-
कादंबनी के अक्टूबर 2014 के अंक में समीक्षा पढ़ सकते हैं कौशलेंद्र प्रपन्न ‘नागार्जुन का रचना संसार’, ‘कविता की संवेदना’, ‘आलोचना का स्व...
-
प्राथमिक स्तर पर जिन चुनौतियों से शिक्षक दो चार होते हैं वे न केवल भाषायी छटाओं, बरतने और व्याकरणिक कोटियों की होती हैं बल्कि भाषा को ब...
-
कौशलेंद्र प्रपन्न सदन में तकरीबन साठ से अस्सी जोड़ी आंखें टकटकी लगाए सुन रही थीं। सुन नहीं रही थी बल्कि रोए जा रही थी। रोने पर उन्हें शर...
No comments:
Post a Comment