Friday, May 5, 2017

बर्फ का पिघलना


सिर्फ पहाड़ां पर ही बर्फ नहीं पिघलते। बल्कि रिश्तां के दरमियान भी बर्फ मेल्ट होते हैं। कोई भी रिश्ता स्थाई भाव में नहीं रह सकता। स्थाई जब कुछ है ही नहीं तो रिश्ते कैसे एकल, एकांत में पनप सकते हैं। रिश्तों को पनपने के लिए समाज और व्यक्ति की दरकार होती है।
देश और समाज के बीच भी एक आइस बर्क बन जाता है जिसका इल्म हमें नहीं होता। यह धीरे धीरे मजबूत होता है। इसकी गहराई का अनुमान भी कई बार नहीं होता। और हमारे रिश्तों का जहाज इससे टकरा जाता है।
आप लाख तर्जेबेकार कैप्टन हों। आप के पास हजारों घंटों का अनुभव हो। लेकिन एक चूक, एक ग़लती जहाज को डूबोने के लिए काफी होती है। रिश्तें भी तो ऐसे ही होते हैं। यदि हमने रिश्ते की गहराई और जड़ को ठीक से नहीं समझा तो वह रिश्ता आइसबर्क से टकरा कर डूब जाता है।
पाकिस्तान और भारत का रिश्ता ही लीजिए तकरीबन सत्तर साल से यह आइस एक पहाड़ बना है। इसे एक दिन में न तो तोड़ सकते हैं और न ही पिघला ही सकते हैं। दरपेश बात यह है कि क्या हमारी कोशिश पूरी है कि हम रिश्ते को ठीक करना चाहते हैं। ग़लतियां किसी भी रही उसका ख़ामियाज़ा तो बड़े स्तर पर समाज और वहां-यहां के नागरिकों को भुगतना पड़ रहा है।
इतिहास में अटकी हुई चेतना न तो समाज, न व्यक्ति और न ही देश हित में होती है। हमें अतीत में अटकी हुई चेतना से आगे निकला ही पड़ता है। इतिहास हमें इसकी समझ देता है कि अतीत की ग़लतियों को ध्यान में रखते हुए कैसे बेहतर आज का निर्माण कर सकते हैं।

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