Tuesday, May 13, 2014

तो यूं होती है कविता


तो यूं होती है कविता
 कहती है कोई कहानी
आपकी हमारी,
उस जहान की,
इस दुनिया की।
उस कविता में होती है एक कहानी-
एक उपन्यास सा वितान,
या कि भावों की एक लंबी चादर,
जिसमें गूंथते जाते हैं चांद तारों को बेहिसाब,
कविता यूं आगे बढ़ती है।
कविता में जीती है एक लड़की-
उसकी बातें,
उसकी हंसी,
उसके बैठने,
बोलने की आदतें
सब कुछ शामिल होती है उस कविता में।
उस कविता में होती है एक शाम-
शाम में मिले एहसासों की उष्मा,
शाम की हवा जिसमें उसकी बातें तैरती हैं
होती हैं वो तमाम बातें जो अभी अभी कानों से दिल में उतर गई हैं।
हां कविता में लेती है सांस-
हमारी हर जीए हुए पलों की,
जिसमें शामिल होती मां की डांट,
पिताजी के लाए तरबूज की लाली,
भाई का तमाचा या फिर बहन की लड़ाई,
सब कुछ तो होती हैं एक कविता में।
भावों के उतर चढ़ के साथ और क्या होती है कविता में भाई साहब-
कविता में अतीत की सुगबुगाहट,
वर्तमान की चुनौतियां,
भविष्य की ओर तकती आशाएं,
सभी तो जीते हैं अपनी उम्र,
फिर क्या छूटता जाता है एक कविता में?
हां छूट जाती हैं
चंद मनुहार की बातें,
उससे सुनी झाड़कियां,
या फिर सुबकती उस रात की बातें,
या फिर रह जाती हैं,
कुछ किए वायदे,
कुछ तारीखें।


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