Friday, February 17, 2012

इक शिक्षा सामानांतर बोध

शिक्षा के शेत्र में कई तरह के नवाचार चल रहे हैं. लेकिन फिरभी स्कूल बच्चों को  अपनी तरफ  खीच नहीं पा रही है तो यह सोचने की बात है की क्या वजह है. यही सवाल १९८७ में बोध शिक्षा समीति के संस्थापक योगेन्द्र जी को खीचा. काम करने की नै दिशा दी. आज इस बोध संस्था की सपने पुरे राजस्थान में फल फुल रहे हैं.
जयपुराने २० किलो मीटर पहले  बोध परिसर काम के सूक्ष्म तत्वों पर काम करती है. उन सपनो को साकार करने के लिए उसने राजस्थान सरकार के पिलोत प्रोजेक्ट के साथ हाथ मिल्या. आज की तारीख में जयपुर के अलग अलग सरकारी स्कूल में बोध अपनी योजना चला रही है. जिसमें बोध के शिक्षक सरकारी स्कूल के शिक्षक के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. बच्चों में पढने के प्रति ललक तो बढ़ी ही है साथ ही समुदय के लोगों में भी इक युथास  दिखाई देती हैं. 
भाति पुर और आमापुर के गरीब परिवार की बच्चे यहाँ अपनी तालीम के खाब पुरे कर रहे हैं. १९८७ में योगेन्द्र जी ने जैसे जिस तरह की कठिन हालात में बोध की शुरुयात की यह इक प्रेरणा का विषय है. आज आमा पुर का शाला पूरी तरह से समुदाय की हाथों में है. 
शिक्षा में यैसे नवाचार के लिए रस्ते निकालने ही होंगे. बोध न्च्फ़ २००५ को आधार बना कर परीक्षा से शिक्षा को मुक्त करने की मुहीम में जुटी है . बोध परिसर में बच्चों को ध्यान में रखा गया है. वह चाहे क्लास रूम हो या पठान पाठन की सामग्री हर उन चीजों में इक न इक न्यू तकनीक की, समझ की, नवाचार की झलक मिलती है. 
kaas बोध के साथ हमारी शिक्षा के मुगलों को विचार करना होगा.                          

No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...