हम कहीं भी चले जाएँ मगर हमारी जमीन हम से जुदा नहीं होती। यही वजह है कि साहित्यकार अपनी रचनाओं में अपनी धरती को भूल नहीं पाते। वह जिस भी विधा में आये वह जमीं जरुर नज़र आता है। ललित लेख हो या कविता या कहानी हर विधा में हमारी मिटटी बोलती हैं।
बिस्मिल्ला खान ने कभी बनारस को नहीं छोड़ा। विद्यानिवास मिश्र ने मोरे राम का मुकुट भीग रहा है या चितवन की .... आदि। हर उन लोगो ने अपनी रचना में धरती को नहीं भुला जिन लोगो को धरती से जुड़ कर जीवन रस मिलता रहा है।
हमें अपनी जमीं को कभी नहीं भूलना चाहिए। जड़ से कट कर ज्यादा दिन तक पेड़ हरा नहीं रह सकता। कुछ दिन के बाद उसे सुखना ही है। हमारी फिदरत भी येसी ही है। हम अपनी जमीन से विलग हो कर खुश नहीं रह सकते। यही वजह है कि शहर में रह कर भी अपनी बालकोनी, द्रविंग रूम ने हरियाली, टोकरी वाली महिला को सजा कर अपने अन्दर गावों को जीते हैं।
हमारे आस पास हर चीज चीख चीख कर कहता रहता है कि कम से कम गावों की ओर लौट नहीं सकते तो कोई बात नहीं अपने अन्दर तो वह भदेश गावो को रच तो सकते हैं।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
Friday, December 24, 2010
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शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
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