Saturday, September 24, 2011

चूकी हुई कहानी

हमारे बीच में कहानी हवा करती थी. जो रफ्ता रफ्ता दूर जा चूकी. कहानी गढ़ने में वाही मज़ा आता है जो किसी भी क़िस्म के सृज़न में.
कोई आप से पूछे की आपने कब अपने बच्चे को कहानी सुनाई तो शायद आप याद न कर पायें. येसा क्यों घटा? कभी पुचा खुद से?
दरअसल यह सवाल भी बैमानी सी है. इतना पूछना भी टाइम जाया सा लगता है. लेकिन जब हमारा पौध सुनना बंद कर देता है या इगनोरे करता है तब हमारी नीद खुलती है. तब कहानी दादू की तलाश में भटकते हैं .  काश खुद ही कभी कहानी सुन्ने की जहमत उठा लें तो परेशानी काफूर हो जायेगी.        

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