तोहमत लगा का कहना...
कुछ तो नहीं कहा , अक्सर ही हम लोग जब भी किसी से फ़ोन पर बात करते हैं सीधे सिकवा के लहजे में - आज कल बड़े हो गए। आज जी कैसे याद आ गई। सवाल तो फेक दिए जाते हैं मगर यदि यही सवाल लपेट कर आगे सरका दिया तो मुह सूज जाता है।
कितना बेहतर हो कि सिकवा की जगह कुछ बात की जाए।
अक्सर हम शिकायत में सुनहरा पल गवा देते हैं।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
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शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
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