हाँ कुछ सवाल यूँ ही हमारे आगे टंगे रहते हैं गोया किसी ने उन्हें कह रखा हैं कि जब तक न कहा जाये तब तक यूँ ही बने रहना है।
मसलन क्या प्यार महज किसी का बे इन्तहां चाह ही है? क्या उस चाह को इतना प्यार करना गुनाह है कि किसी दिन यही बोल पड़े कि यार इतना प्यार मत किया करो।
कभी कभी लगता है कि इक सीमा प्यार में होती है। गर किसी को ज़यादा प्यार करेंगे तो संभो है वो सोचने लगे कि आखिर माज़रा क्या है?
इसलिए बंधू यह सवाल हमेशा ही तंग जाते हैं कि कहीं आप के प्यार को सामने वाला आपकी कमजोरी तो नहीं मान बैठा है? कहीं आपका प्यार उसे खीझ तो पैदा नहीं करती? सवालों की लम्बी कतार लग सकती है। मगर खतम नहीं होगा सवाल।
सो ज़रा सोच तो लें क्या प्यार उतना ही दिया या किया जाए जितना पाच जाये।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
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