Sunday, November 15, 2009

राज ने छेदे फिर बाहरी राग

लीजिये राग के कई रूप में इक राग बाहरी राग के शामिल किया जाना चाहिए। राज ठाकरे ने फिर बाहरी राग धुन गुनगुने है। इसे दुर्भाग्य से ज़यादा और क्या कहा जाए के अभी मनसे की और से विधान सभा में हिन्दी में शपथ लेने पर हंगामा किया जिस पर समस्त देश शर्मसार हुवा , घटना ठंढा भी नही हुवा था के राज ठाकरे ने बाहरी राग दुबारा से छेद दी है।
देश , समाज को भाषा के आधार पर बरता जाएगा तो इसे दुर्भाग्य ही तो कहना होगा। देश व् भाषा आपस में सौहादर्य भाव पैदा करती है, न के समाज के फाक करती है। जो लोग भाषा , धर्म को समाज में ओईमनाश्य फुकने के रूप में इस्तमाल करते है तो उन्हें बक्सा नही जन चाहिए।
देश को अपनी भाषा और संविधान पर नाज़ हुवा करती है जो इसे विलगने की कोशिश करेंगे उनको न तो देश वासी माफ़ करेगी और न ही किया जन चाहिए। लेकिन राज ठाकरे महाराष्ट्र में इक खास तारा के सुनामी लेन की कोशिश कर रहे है। समये रहते इसको रोका नही गया तो यह इक दिन हमारी साझा संस्कृति का मटिया मेट कर देंगे।

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