Friday, April 11, 2008

गरीबी की बू

तुम्हारी फैमली से गरीबी की बू आती है
न तुम पिज्जा खाते हो
न ही तुम खाना खाने बाहर जाते हो
कहते हो ज़माने के साथ चलता हूँ
पर ख़ुद कहो क्या खाक ज़माने के संग हो
न गाड़ी है
न ही घर
तुम्हारी फैमली से गरीबी की बू आती है
पसीना बहते तो हो
पर क्या कर पाए अब तलक
कहो चुप हो गए
तुम्हारी फैमली से गरीबी की बू आती है

No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...