कर्म हमने किया तो भोगना होगा। कर्म प्रधान इस देश में गीता, उपनिषद , व् अन्य ग्रन्थ भी कर्म पर जोर देते हैं। कर्म प्रधान यही जग माहि। बिना कर्म के हम चाहते हैं हमने जो किया भी नहीं उसके भी फल हमें मिले। पर क्या यह संभव है ?
हमारे कर्म हमारे साथ चलते हैं। चाहे लोक में इसके उद्धरण देखें या अन्य पर लेकिन कर्म अपना रंग दिखाता है। हमने यदि म्हणत की है तो वह इक न इक दिन अपना रंग लायेगा ही। दो भाई व् बहन इक घर में पल बढ़ कर समाज में अपनी जगह बनाते है। दोनों के कर्म और परिश्रम काम आता है न ही जिस घर में जन्म लिया। पिता कितने भी धनि , ज्ञानी हों लेकिन यदि उनके बच्चे उनसे नहीं सीखते तो पिता के नाम बस तभी तक साथ होते हैं के फलना के बेटे हैं। देखो , पिता इतना पढ़ा लिखा लेकिन बेटे रोड पर हैं।
कर्म की प्रध्नता कोई भी नकार नहीं सकता । कुछ देर के लिए आप कुबूल न करे लेकिन है तो हकीकत की आप जो कर्म के पेड़ बोते है वही फल आप को मिलता है। यह अलग बात है कि कुछ लोगों को बिना बोये ही आम खाने को मिल जाता है। लेकिन यैसे लोगों की संख्या कम होती है। इसलिए कर्म करने में विश्वास करना बेहतर है न कि भाग्य पर हाथ धर कर।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
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bat hai to alfaz bhi honge yahin kahin, chalo dhundh layen, gum ho gaya jo bhid me. chand hasi ki gung, kho gai, kho gai vo khil khilati saf...
1 comment:
अच्छा चिन्तन.
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