कितने राठोर हमारे आस पास घूमते रहते हैं। सीना फुला कर गोया कह रहे हों मेरा कोई क्या बिगाड़ लेगा। मगर आपने जो भी भूत में किया वो आपके पीछे पीछे चली ही आती है। देखिये, राठोर ने कभी सोचा होगा कि १९९० की बात २० साल बाद उनके गले पद जाएगी। आडवानी व् उनके साथ राम मंदिर की तमन्ना लिए बाबरी मस्जीद को ख़ाक में मिलते समय सोचा होगा कि उनपर इतने सालों के बाद केश भी खुल सकता है। लेकिन सच है कि कभी न कभी हमारे अतीत वर्तमान में रोड़े अटकाते हैं तब लगता है हमने क्या गलती की जिसकी सज़ा मिल रही है।
हमारे समाज में कई सारे राठोर हैं खुलम खुल्ला खेल खेलते हैं। उनके मनोबल इतने बढ़ जाते हैं कि कानून को अपने घर की दाई समझने की भूल कर बैठते हैं। इन्द्र गाँधी की हत्या के बाद देल्ली में किस कदर सिखों पर जुल्म किये गए क्या इसे कोई भुलाये भूल सकता है। पूरे देश में सिखों पर जैसे हज़ारों यमराज इक समय में हमला बोल दिया हो। लोगों ने जम कर लूट पात किया। सिखों ने बाल काट डाले। हिन्दू होने का हमने क्या ही लाज़वाब परिचय दिया। सज्जन कुमार या तित्लर तो इक आध चेहरे थे जिनको आज की तारीख में किये का फल मिल रहा है। मगर उन हज़ारों चेहरे को कैसे पहचान किया जाये।
राठोर, कसाब या यैसे ही कई नाम हो सकते हैं, नाम बेशक बदल जायेगे लेकिन उनकी करतूतों में कोई कमी नहीं आ सकती। इस लिए हमने यैसे चेहरे को समाज के सामने बे नकाब करना होगा। उनके हौसले तोड़ने होगें तब संभव है समाज में महिलायों को शायद सुरक्षा दिला सकें।
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