आतंकी किसी भी देश , धर्म, के हों मूल बात ये है वो महज आतंक ,खून , चीख- पुकार फैलाने में विशवाश करते हैं। चाहे वो सीमा पर की ज़म्मीन हो या भारत की हर जगह सिर्फ़ ब्लास्ट किए जा रहे हैं।
लोग रोते बिलखते हैं। मगर आतंकी इसको अपनी सफलता मानते हैं।
देश संकट में है। रोज कही न कहीं ब्लास्ट हो ही रहे हैं। इससे किस का मकसद सधता है ? रोटी तो मानवता ही है। पर क्या कहें , यूँ के घर परिवार में सदस्य होते हैं या नही ? पता नही पर दिल यूँतो होते नहीं होंगे ।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
Sunday, September 28, 2008
Thursday, September 25, 2008
आखरी मुलाकात
आज लगा सभी से शायद आखरी मुलाकात हो रही है। फिर कितने दिनों के बाद लोगों से मिलना होगा? इक लम्बी चुप्पी के बाद जब उनलोगों से मिलना होगा तो क्या वही ऊष्मा, वही , मुस्कान दिखेगा?
लेकिन शायद आज दोस्तों से मिल कर लौटना येसा लगा की जैसे पता नही कब फिर मुलाकात होगी।
निर्मल वर्मा की इक बात याद आती है।
लेकिन शायद आज दोस्तों से मिल कर लौटना येसा लगा की जैसे पता नही कब फिर मुलाकात होगी।
निर्मल वर्मा की इक बात याद आती है।
Thursday, September 18, 2008
खाली यूँ ही
क्या सोचते हैं जब आप खाली बैठे होते हैं ।।
अकसर हम बीते दिनों और गुजरे समय की घटनावो में डूबता उतरते रहते हैं। या यूँ कह लें की हमें बेहद पसंद होता है यह कहते रहना की तब मैं या था वो करता था ....
दरअसल हम अपने अतीत से निकल ही नही पाते हमें वो दिन ही याद आते हैं जो गुजर चुका है ।
कभी मौजूदा पेचोखम से रूबरू होने की हिम्मत जुटा कर हमें चल रहे समय की और आने वाले कल की चुनौतियें का मुयाना करना बेहतर होता है ।
अकसर हम बीते दिनों और गुजरे समय की घटनावो में डूबता उतरते रहते हैं। या यूँ कह लें की हमें बेहद पसंद होता है यह कहते रहना की तब मैं या था वो करता था ....
दरअसल हम अपने अतीत से निकल ही नही पाते हमें वो दिन ही याद आते हैं जो गुजर चुका है ।
कभी मौजूदा पेचोखम से रूबरू होने की हिम्मत जुटा कर हमें चल रहे समय की और आने वाले कल की चुनौतियें का मुयाना करना बेहतर होता है ।
Tuesday, September 9, 2008
बाज़ार में मीडिया या मीडिया में बाज़ार
बाज़ार का चरित्र ही होता है कुछ समय में बदल जाए। बाज़ार केवल मुनाफा मांगती है। मुनाफे के लिए बाज़ार किसी भावना में नही। शुद्ध रूप से पैसे बनाना ही बाज़ार का लक्ष्य होता है। ठीक उसी तर्ज़ पर आज मीडिया भी केवल मुनाफे की ख़बर उछालता है।
आज मीडिया की कई स्तरों पर आलोचना की जा रही है। केवल हिंसा , सेक्स , तमाशा जैसे लोक रूचि की चटपटी खबरों को प्रमुखता से इतनी बार बजाते है की लोगो को साडी चीजे सच लगती है।
सच वह जो महज नम्बर बनने में कम आते हैं। मीडिया की आलोचना इस बात को लेकर भी होती है की यह चीजों को या तो इस लेवल तक ला देती है की विश्वास कमतर होता जाता है या फिर लोग देखना बंद कर देते हैं।
आज मीडिया की कई स्तरों पर आलोचना की जा रही है। केवल हिंसा , सेक्स , तमाशा जैसे लोक रूचि की चटपटी खबरों को प्रमुखता से इतनी बार बजाते है की लोगो को साडी चीजे सच लगती है।
सच वह जो महज नम्बर बनने में कम आते हैं। मीडिया की आलोचना इस बात को लेकर भी होती है की यह चीजों को या तो इस लेवल तक ला देती है की विश्वास कमतर होता जाता है या फिर लोग देखना बंद कर देते हैं।
Tuesday, September 2, 2008
बिहार बाढ़ के समय देश साथ
उधर बिहार में बाढ़ में लोग जूझ रहे हैं इधर रामदेव के पहल पर पुरे देश के बड़े बड़े उद्योग घराने मदद के लिए आगे आ रही हैं। न केवल कम्पनी बल्कि राज्य सरकार भी मदद की राशिःबिहार भेजने में जुट गए हैं। सरकार के साथ ही सैनिक भी अपनी इक दिन का पेमेंट बिहार भेज रही हैं। संसद भी अपनी इक दिन का वेतन दे रहे हैं।
देखा गया है जब भी देश में विपत्ति का दौर आया है पुरा देश एक हो जाता है। बाढ़ से तबाह लोगो को देख कर आखे भर भर आती हैं। लोगो की जमीं छुट गई। घर छुट गए। बस जीने की आस उनकी आखों में झाकती हैं।
या रब उनको इस आपदा से उबार दे।
देखा गया है जब भी देश में विपत्ति का दौर आया है पुरा देश एक हो जाता है। बाढ़ से तबाह लोगो को देख कर आखे भर भर आती हैं। लोगो की जमीं छुट गई। घर छुट गए। बस जीने की आस उनकी आखों में झाकती हैं।
या रब उनको इस आपदा से उबार दे।
Monday, September 1, 2008
अतीत के संग
दरसल अतीत के संग चिपक कर रहा नही जा सकता।अतीत को समझा ही जा सकता है। ताकि आगे की सीख ली जा सके। अतीत में अटकी चेतना कभी भी किसी भी देश समाज और आदमी के लिए बेहतर नही होता। अतीत को तो ठीक ही किया जा सकता है।
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