कसाब को दुनिया ने नंगी आखों से देखा है कि कदर उसने मुंबई में कहर बरपाया। उसने कुबूल भी किया। फैसला अभी तक रोक कर रखा गया है। कुछ लोगों का मन्नना है कि उसकी उम्र महज २२ साल है उसे सुधरने का मौका मिलना चाहिए। क्या इस दलील में दम है? यदि वो खुद से पूछे तो उसकी रूह बोल उठेगी कि तुमको इस काम के लिए दुनिया का कोई भी न्याय बचा नहीं सकता।
कितने आशु , कितने सपने का खून किया है इस का शयद उसे इल्म नहीं। लेकिन जिस बच्ची के सर से बाप का शाया उठ गया उस से कोई पूछे कि बाप का मरना क्या होता है। उस औरत से कोई जा कर पूछे कि पति के बिना ज़िन्दगी क्या मायने रखती है? लेकिन सवालों से कसाब को क्या लेना। उसे तो आकयों ने सिखाया है आशुयों पर मत जाना, उदास चहरे मत देखना। वर्ना मनन करने लगोगे कि कहीं गलत तो नहीं कर रहा। हमारा धर्म दहशत, खून बहाना, चीखें पैदा करना है। हमारी न तो कोई बहन, माँ , बाप , भाई बेटी, हैं नहीं हम किसी के पिता ही हैं।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
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शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
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bat hai to alfaz bhi honge yahin kahin, chalo dhundh layen, gum ho gaya jo bhid me. chand hasi ki gung, kho gai, kho gai vo khil khilati saf...
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