कितने कसाब यह सवाल अपने आप में बड़ा मौजू है। यूँ तो कसाब इक नाम है। हिंदी याकरण के नियम से देखें तो यह व्यक्ति वाचक संजिया है। लेकिन वास्तव में आज कसाब समूह वाचक संजय बन चूका है। बहुवचन कसाब किसी भी देश के लिए घोर खतरा पैदा कर सकते हैं। इक कसाक को सजा य मौत देने से मसला हल नहीं हो सकता। हमें कसाब को पैदा करने वाले उस जमीन को बंजर बनाना होगा। कसाब के मौत की खबर पर पाकिस्तान के अखबार जंग ने लिखा, ' कसाब स्कूल बीच में थप करने वाला लड़का है। वो तो घरसे काम की तलाश में निकला था मगर वो आतंकी संगठन के हाथ में पद गया। जहाँ उसे गन थमा दिया गया। प्रशिशन दिया गया। आज पाकिस्तान की युवा पीढ़ी रोजगार, रोटी दी तलाश में गलत संघटन आतंकी लोगो के हाथ लग जाते हैं। हमें इस तरफ गंभीरता से सोचना होगा।
जंग की शब्दों से पाकिस्तान की युवा पीढ़ी की दर्द और किश्मत, और भविष्य की झलक मिलती है। सच ही है पिछले साल इस बाबत कुछ रिपोर्ट भी आये थे जिसमे कहा गया था कि पाकिस्तान में युवा पीढ़ी के मदर्शे में नै वर्णमाला रटाये जा रहे हैं। जिस में अलिफ़ की जगह आतंक, बे का मायेने बम आदि की तालीम दी जा रही है। ज़रा कल्पना कर के देखें कि जहाँ के युवा इस तरह की तालीम हासिल कर रहे हो वहां किसे तरह की भविष निर्माण हो रहा है। पाकिस्तान की आम जनता को मूल जरूरतों से भटक कर कश्मीर पाने के सपने दिखाना इक तरह से वहां की सियासत और सेना की गहरी चाल है। ताकि आम जनता रोजगार, घर, तालीम जैसे बुनियादी हक़ की मांग को भूल कर कश्मीर पाने के सपने में सोये रहें।
पाकिस्तान और भारत दोनों ही देशों को बखूबी मालूम हो चूका है कि तमाम पुराने मुद्दे बातचीत से ही सुलझी जा सकती है। थिम्पू में दोनों देशों के प्रधनमंत्री मिल कर इक नै पहल की कि रुके हुवो संवाद को आगे बाध्य जाये। गिलानी ने वचन दिया कि हम अपने देश की जमीन का इस्तमाल भारत के खिलाफ आतंक फ़ैलाने के लिए नहीं होने देंगे। और इस बात पर एतबार कर संवाद की रेलगाड़ी को हरी झंडी दिखा दी गई। अब दोनों देशों के विदेश मंत्री के बीच बातचीत होगी।
आतंक ने दोनों देशों के रिश्ते को लम्बे समय से नुकसान ही पहुच्या है। जब तब वार्ता की गाड़ी डेरेल हुई तो इसके पीछे आतंकी बर्दातें रही हैं। लेकिन इस का खामियाजा तो आम जनता को भुगतना पड़ा है। व्यापारी कामगार और आम जनता अपने दिल को किसी तरह समझाते रहे हैं कि इक दिन दोनों देशों के बीच के फासले मिट जायेंगे ये लोग अपने रिश्तेदारों से मिल सकेंगें। देखिया विभाजन ने किसे तरह दो दिलों, रिश्तों के बीच इक गहरी खाई बना दी। जो ६५ साल बाद भी बार्कर है।
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