Thursday, May 20, 2010

भाषा की चमक


भाषा की चमक जी आपने सही सुना भाषा की अपनी चमक भी होती है। भाषा को जितना बोला, लिखा , सुना और पढ़ा जाये उतनी ही हमारी भाषा दुरुस्त और चमकीली होती चली जाती है। वैसे तो हीरानंद सचिद्यानंद अजेय ने कहा था कि बासन को ज़यादा मांजने से मुल्लमा छूट जाता है। इसको भाषा पर उतर कर लोगों ने देखा और कहा कि उसी प्रकार शब्द को ज्यादा प्रयोग से उसकी अथ्त्वाता मधिम पद जाती है। लेकिन मेरा मानना है कि भाषा एसी चीज है जिसे जितना मांजा जाये उसकी चमक और दुगनी हो जाती है।

हम गाली अपनी ज़बान में क्या ही फर्र्रते से देते हैं वही अगर कहा जाये कि इंग्लिश में उसी अधिकार से दें तो शायद हम न दे पायें जब गाली देने में मुश्किल होती है तो कोई इंग्लिश बोलने में कितना हिचकेगा इसका अंदाजा लगा सकते हैं। भाषा को तो जितना बोलो उतना ही सुन्दर और निखरता है । अमिताभ ने इक फिल्म में बोला था- "आई वाक् इंग्लिश, आई ईट इंग्लिश, आई स्लीप इंग्लिश" कितनी गंभीर बात है मगर इसे क्या ही सरल तरीके से गाने में अमिताभ ने गाया। भाषा पर इसे घटा कर देखें तो पाते हैं कि जिसने भी भाषा के साथ इस तरह का रिश्ता कायम कर लिया उसकी भाषा के साथ गहरी छनती है। भाषा डरावनी नहीं होती। और न ही भाषा कठिन होती है। वास्तव में भाषा बेहद ही नाज़ुक , कोमल , और कमसीन होती है। इस के साथ ज़रा भी बेवफाई उम्र भर के लिए दुखद होता है।

भाषा के साथ मुहब्बत करने वाले दुनिया में बेहद ही कम लोग हुवे हैं। जिसने भी भाषा के साथ इलू इलू किया है उसको पूरी दुनिया ने पलकों पर बैठ्या है। गोर्की , प्रेमचंद , प्रसाद, निराला, महादेवी वर्मा ही नहीं बल्कि और भी नाम हैं जिनकी प्रसिधी भाषा पर जबरदस्त पकड़ और कमाल की दोस्ती ने रंग दिखा दिया।

इनदिनों स्कूल की छुट्टियाँ हो गई हैं बच्चे विभिन्न कोर्से में सिखने जा रहे हैंइंग्लिश स्पेअकिंग , पेर्सोनालिटी देवेलोप्मेंट आदि। इंग्लिश बोलने की ललक ने इन बच्चों को गर्मी में भी चैन से बैठने नहीं दिया। हर कोई चाहता है बेधरक र्न्ग्लिश बोले। मगर झिझक है कि बोलने नहीं देती। स्कूल बोलने से मना करता है। माँ पिता बोलने के लिए क्लास में भेजते हैं। मगर यहाँ उनकी ज़बान ही नहीं खुलती। वैसे तो चपर चपर बोल लेंगे लेकिन जब बोलने को कहा जाये तो मौन साध लेंगे। पता नहीं सही बोल पायूँगा या नहीं।

भाषा को आज याद कर परीक्षा में सवाल कर आने तब सीमित कर दिया गया है। वही वजह है कि बोलने में कतराते हैं। परीक्षा बोलने की नहीं होती बल्कि लिखने की होती है। इसलिए लिख कर ९० ९७ फीसदी अंक तो आजाते हैं मगर बोलने को कहा जाये तो गला सूखने लगता है।

भाषा व्याकरण से पहले आती है। व्याकरण भाषा का अनुसरण करती है न कि भाषा व्याकरण के पीछे भागती है। बचपन में बिना व्याकरण का ख्याल किये बोलते हैं जब स्कूल जाना शुरू करते हैं तब व्याकरण सीखते हैं। इसका मतलब यह हुवा कि भाषा व्याकरण की मुहताज नहीं है। भाषा को जितना बोल सकें, सुने उतना ही वह भाषा हमारे करीब आती चली जाती है।

शर्माना छोड़ दाल और भाषा से मुहब्बत कर ले यार। फिर देखना लोग कैसे तेरी तरफ खीचे चले आते हैं।

1 comment:

राम त्यागी said...

that's why i say - हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए अपना योगदान दें ! ये हमारे अस्तित्व की प्रतीक और हमारी अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है !

http://meriawaaj-ramtyagi.blogspot.com/

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