रास्ते कहीं नहीं जाते जाते हैं हमारे कदम। इसको इस रूप में समझ सकते हैं कि रास्ते अगर कहीं जाते तो हर राहगीर कहीं न कहीं ज़रूर पहुच जाता। रास्ते तो यहीं के यहीं रहते हैं चले वाला अपनी मंजिल तक पहुच पता है। दुसरे शब्दों में , अगर सही राह , सही समय पर, सही दिशा में चुना जाये तो संभव है इक न इक दिन चलने वाला अपनी मंजिल तक पहुच जायेगा। लेकिन जब रास्ते सही न हों, दिशा ठीक न हो तो उस राही को ता उम्र भटकते देख सकते हैं। इसलिए यदि हम चाहते हैं हैं कि हम उम्र भर चलते ही न रहें बल्कि निश्चित लक्ष्य भी पा सकें तो पहले हमें अपनी मंजिल और उस तक पहुचने वाली दिशा को जाँच लेना होगा।
आज अधिसंख्य के साथ यही त्रासदी है कि उसे चलना तो मालुम है मगर किसे राह जाये यह नहीं पता। इसलिए वह कई बार गलत राह पर, गलत दिशा में अपनी तमाम ऊर्जा जाया करदेता है। ज़रूरी है कि आज के युवा को सफल, कुशल और मंजे हुवे लोगों के द्वारा मार्ग दर्शन मिले। ताकि इक युवा अपनी उर्जा को सही दिशा में अपनी प्रकृति रुझान के अनुसार लक्ष्य निर्धारित कर आगे बढ़ सके।
कई बार माँ बाप या भाई बहन की अदुरी खवाइश को बच्चों के कंधे पर लड़ दिया जाता है जिसे वह पूरी ज़िन्दगी लिए लिए फिरता है। आधे अधूरे मन से मिली मंजिल को पाने में इक युवा अपनी पूरी उर्जा झोक देता है। बेमन , गलत फिल्ड और कई बार तो अपनी चुनी मंजिल को तिलांजलि दे माँ बाप की अधूरी इक्षा को पूरा करता रहता है।
हम राह दिखाने, लक्ष्य निर्धारित करने और विधि चुनने में मदद कर सकते हैं। लेकिन चलने वाला वही राही लक्ष्य तक पहुच पता है जिसने उचित समय पर, अपनी उर्जा की पहचान कर राह पकड़ कर चला करते हैं।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...
-
प्राथमिक स्तर पर जिन चुनौतियों से शिक्षक दो चार होते हैं वे न केवल भाषायी छटाओं, बरतने और व्याकरणिक कोटियों की होती हैं बल्कि भाषा को ब...
-
कादंबनी के अक्टूबर 2014 के अंक में समीक्षा पढ़ सकते हैं कौशलेंद्र प्रपन्न ‘नागार्जुन का रचना संसार’, ‘कविता की संवेदना’, ‘आलोचना का स्व...
-
bat hai to alfaz bhi honge yahin kahin, chalo dhundh layen, gum ho gaya jo bhid me. chand hasi ki gung, kho gai, kho gai vo khil khilati saf...
No comments:
Post a Comment