रुश्दी को डेल्ही आने पर रोक और बाबा रामदेव पर स्याही फेका जाना हमारे अन्दर की कातरता और खीझ ही है. यदि संवाद नहीं होता तो विवाद खड़ा होता है.
रुश्दी इक विचार उत्पादक हैं. विचार देने वाला सम्मानिनिया होना चाहिए. लेकिन जयपुर में उसे न आने के सरे इंतज़ाम किये जा रहे हैं. जबकि लेखाका बन्धनों से मुक्त होता है. लेकिन समाज का हिस्सा होने के नाते कुछ मूल्या की जिम्मेदारी उस पर भी होती है. किन्तु हम कितने अशिस्नु है की आलोचना को सह नहीं पाते. और किसी पर स्याही फेक कर विरोध दर्ज करते है तो किसी पर चप्पल और जुटे.
सहधी की ह्त्या दरअसल गाँधी की विचारो की ह्त्या थी. यही रुश्दी के साथ हो रहा है. बाबा रामदेव पर स्याही उछालना संवाद हीनता है.
रुश्दी इक विचार उत्पादक हैं. विचार देने वाला सम्मानिनिया होना चाहिए. लेकिन जयपुर में उसे न आने के सरे इंतज़ाम किये जा रहे हैं. जबकि लेखाका बन्धनों से मुक्त होता है. लेकिन समाज का हिस्सा होने के नाते कुछ मूल्या की जिम्मेदारी उस पर भी होती है. किन्तु हम कितने अशिस्नु है की आलोचना को सह नहीं पाते. और किसी पर स्याही फेक कर विरोध दर्ज करते है तो किसी पर चप्पल और जुटे.
सहधी की ह्त्या दरअसल गाँधी की विचारो की ह्त्या थी. यही रुश्दी के साथ हो रहा है. बाबा रामदेव पर स्याही उछालना संवाद हीनता है.
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