कितनी साड़ी चाहतें,
कुछ उम्मीदें,
इक टूटन,
इक ही जखम,
ता उम्र साथ रहता है.
कुछ उम्मीदें,
इक टूटन,
इक ही जखम,
ता उम्र साथ रहता है.
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...
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