खाप की थाप सुन रहे हो मुन्ना? गोत्र के कूप में गिर रहे हैं हम , सुन रहे हैं कि तुम्हारे गावो में भी लड़के और लड़की को मौत के घाट उतर कर बुजुर्ग लोग खुश हैं कि गावों की नाक कट गई। कम से कम आने वाली पीढ़ी तो प्यार के रह पर कदम बढ़ने से पहले दस बार सोचेगी। मौत का खौफ इनके जेहन में बैठना बेहद ज़रूरी है। सुना तो यह भी है लड़की के बाप और भाई खुद मिल कर लड़की को रात में काट कर नहर में बहा आये? क्या यह सच है मुन्ना ?
पुरे गावों जेवार में उनकी नाक उची हो गई। और उनके बेतवा के लिए रिश्ता इक बड़ी ही मालदार घर से आई है। किसी ने आवाज तक नहीं उठाई कि बेटी के हत्यारे हैं। कल को बहु को भी वही हस्र कर सकते हैं जो बेटी को किया। इनको बेटा चाहिए छये कुछ भी हो जाये। आज कल सुनने में आया है बेटी को स्कूल भी जाने से मन कर दिया गया है। गावों के तमाम लड़कियां घर बैठ गई हैं। लेकिन बहु पढ़ी लिखी की मांग करते हैं। मुन्ना ये तो साफ ज्यादती है। तुम कुछ नहीं बोलते क्या? तुम तो ओज्फोर्ड से पढ़ कर आये हो जी। तुम से उम्मीद लगा रखें हैं। मगर सुना है तुम भी उनकी ही हाँ में हाँ मिला रहे हो। लोग तो यह भी कह रहे हैं कि तुम वोट की खातिर यह सब कर रहे हो। का ई सच है ?
जब पढ़े लिखे लोग जवान खून भी पुराणी जर्जर और बुरी रीति की प्रशंसा करेंगे तो फिर गावों तो गावों शहर भी इससे बच नहीं पायेगा। कल्पना चावला, उषा , चाँद कोचर जैसे बेहतरीन महिला समाज को किसे मिल पाएगीं? कभी सोचा था कि अपने भतीजे की शादी मैं अपनी पड़ोस की उस लड़की के करायुन्गा जो बेहद ही शालीन और पढ़ी लिखी है मगर है नीची जाती की। मगर अब यह भी खाब ख्याब ही रह जायेगा। तुम्हारे गावों में तो मुझे घुसने भी नहीं देंगे। शादी किये मुझे तक़रीबन १५ साल हो गए। तब गावों भी पीछे धकेल आया था। मैं तेरी भाभी को किसे भी हाल में नहीं अलग कर सकता था सो हमने साथ रहने का वचन लिया। तुम तब छोटे थे। तेरी माँ ने हमें अपने पीहर में पनाह दी थी। जिसका परिणाम नुको अपनी जान से हाथ धो कर हमारी जान की रक्षा करनी पड़ी।
मैं अपनी भाभी का कर्ज दार हूँ। मैं उनके बेटे का घर यूँ उजड़ने नहीं दूंगा। तुम को जब भी मेरी मदद की जरुरत हो बेहिक आ जाना। गावों में रह कर न तुम बच सकते और न ही तेरे साथ की दोस्त ही। १६ सालों में बेशक दुनिया बदल गई हो। गावों में सड़क , बिजली पानी , टीवी और फोन आगये हों लेकिन लोगों को अभी भी उसी खोह में रहना भाता है। प्यार करना या अपने पसंद की लड़की को जीवन साथी बनाना सबसे संगीन जुर्म लगता है।
मैं अपना प्यारा भतीजा नहीं खोना चाहता। माँ जैसी भाभी नहीं खोना चाहता।
तुम्हारा
चाचू
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...
-
प्राथमिक स्तर पर जिन चुनौतियों से शिक्षक दो चार होते हैं वे न केवल भाषायी छटाओं, बरतने और व्याकरणिक कोटियों की होती हैं बल्कि भाषा को ब...
-
कादंबनी के अक्टूबर 2014 के अंक में समीक्षा पढ़ सकते हैं कौशलेंद्र प्रपन्न ‘नागार्जुन का रचना संसार’, ‘कविता की संवेदना’, ‘आलोचना का स्व...
-
bat hai to alfaz bhi honge yahin kahin, chalo dhundh layen, gum ho gaya jo bhid me. chand hasi ki gung, kho gai, kho gai vo khil khilati saf...
1 comment:
बहुत अच्छा लिखा सर, बहुत बहुत धन्यवाद। समाज के कथित ठेकेदारों पर इससे बढ़िया और क्या व्यग्यं हो सकता है।
Post a Comment