शहर तो आप और हम लोगों से बना करता है। बियाबान में न लोग रहते हैं और न शहर ही बस्ता है। लोगो के आकर घर बनाने से मोहल्ला, कालोनी, अप्पर्त्मेंट में तब्दील हो जाते हैं। यही वजह है कि किसी खास शहर से हमें राग हो जाता है। चाहे वो जन्मभूमि हो या जहाँ आपने उम्र के लम्बे काल बिताये हों। या फिर जहाँ प्यार हुआ हो।
इसीलिए शहर हर किसी के ज़ेहन में ताउम्र घर बना लेता है। कभी जिस शहर में बचपन बिता हो। साथ के दोस्त बड़े हुए। बालबच्चे दार हो गए। जहाँ बचपन की चची , साथ खेलती वो लड़की अब ब्याह कर घर चली गई। यैसे में वही शहर काटने को दौरते हैं।
शहर की खासबात यही होती है कि वो आपको पुराणी यादों में ले जाता है। वो शहर इसीलिए हमारी जिन्दगी में अहम् होते हैं। जिस शहर में माँ- भाई , बचपन , खोया हो उस शहर से नफ़रत हो जाता है। शहर तो शहर होता है इस से क्या राग और क्या नफरत। जन्म से पहले वो शहर था और हमारे बाद भी वो शहर रहता है।
2 comments:
बिलकुल सही बात है.
नयी नयी ऑंखें हो तो हर मंज़र अच्छा लगता है.
इतने घूमे शहर पर पर अपना घर ही अच्छा लगता है.
सही कहा.. ज़िन्दगी चलती रहती है... शहर हमेशा ज़िन्दा बना रहता है...
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