ताज पिछले साल यूँ ,
खून से यूँ रंग गया,
पर कहाँ बोलो ज़िन्दगी ठहरी भला,
न रुकी ज़िन्दगी ,
न रुकी लहरें समंदर की,
रोड भी जगमग रही भागती।
ज़िन्दगी कब, कहाँ
किस मोड़ पर,
छोड़ अंगुली,
रूठ कर,
चल दे आप से,
या की हम से,
रूकती नही है ज़िन्दगी,
पर यह ज़िन्दगी,
आती रही है,
कई रंग औ कई रूप में।
न रुकी ज़िन्दगी बोम्बे में -
रूकती भला कब तलक राजस्थान में ,
आख़िर डेल्ही की भी ज़िन्दगी चलती रही ,
दिन, महीने, साल में यूँ ढल जायेगे,
पर न रुक ये जाएगी
हर चलती जाएगी यह ज़िन्दगी।
कसाब आए या युनुश,
या की पंडित पादरी,
गर दिलों में है नही इन्सान की वो धरकन,
वह कहाँ सुन पायेगा किसी की चीख,
या फिर प्यार के मनुहार में क्या कोई आबाद,
यूँ होते रहे हैं।
साल
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