कफ़न भी मयसर नही कैसी मौत है यह। कितने दुर्भागे हैं वो लोग जिनके शरीर को मरने के बाद कफ़न भी नसीब न हो तो क्या कहा जाए। आज इक यैसे ही उत्तरी परिसर डेल्ही यूनिवर्सिटी से लगे नाले में इक बहती लाश देखि। पहचान पाना मुश्किल था। वह औरत थी या आदमी यह भी तो पता नही चल पा रहा था। उस लाश को या ततो पुलिस अपने पास कुछ समय के लिए सिनाक्थ के लिए रखेगी अगर कोई अपना मिल गया तो उस को अन्तिम संस्कार नसीब हो गी वरना पुलिस लावारिश मान कर संस्कार कर देगी।
ज़रा सोच कर देखे की कोई येसा भी बद नसीब होता है की उसको मरने के बाद भी कोई अपना नही कहता। इस का इक और पहलु है की वह भी इक मंज़र होता है जब इन्सान तनहा ही मर जाता है मागर किसी को ख़बर भी नही लगती। कई इस तरह की खबरें अख़बारों में देख सकते हैं जो लिखा होता है गुमशुदा की पहचान। कोई चेहरा इतना ख़राब होता है की पहचान मुश्किल होती है।
बस यह तो आप की किस्मत है या आप के घर वालों की जो आपकी लाश तो मिली।
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