बॉम्बे विधान सभा में सोमवारको जो भी हुवा उसे किस तरह संसद शर्मसार हुवा है इस की कल्पना की जा सकती है। यह तो खुलम खुला न केवल भारतीये संविधान की अवहेलना है बल्कि संसद की मर्यादा के साथ खिलवार है। हिन्दी में शपथ लेना क्या इतना बड़ा गुनाह है की विधान सभा की मर्यादा को ताख पर रख कर मनस के लोगों ने हंगामा खड़ा किया। हलाकि उसके लिए उन्हें ४ साल के लिए संसद से निष्काषित कर दिया गया। मगर क्या यही उस कृत्या के लिए पर्याप्त ही
हिन्दी को या हिन्दी बोलने वालों को न केवल मुंबई में बल्कि आसाम में भी दुर्गति सहनी पड़ी है। मगर हमारी चेतना फिर भी जागने को तैयार नही है। हिन्दी भाषी के साथ आज से नही बल्कि इक लंबे अरसे से दोयम दर्जे के बर्ताव सहने पड़े हैं। लेकिन यह घटना इक नही विवाद को जन्म देती है। वह यह की तो क्या हिन्दी और संविधान में प्रदत अधिकार के इसी तरह ताख पर रख कर भारत में कोई भाषा के आधार पर नौकरी करने , राज्य में रहने से वंचित किया जाता रहेगा। अगर हाँ तो इस तरह भारत में हर राज्य इसी तर्ज़ पर अपने यहाँ दुसरे राज्य के लोगों को काम करने रहने के मौलिक अधिकार को धता बताता रहेगा।
ज़रूरत इस बात की है के हम इस तरह की मनोदशा को सुधरें वरना वह दिन दूर नही जब देश के अन्दर लोग खुल कर नही रह सकते।
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