कौन कहेगा कि हम हिन्दी के रखवाले नहीं हैं। कौन कह सकता है कि हिन्दी की रक्षा करने के लिए वे प्रयास नहीं करेंगे। कोई तो मिले जो कहने का माद्दा रखे कि हां वे हिन्दी का समर्थन नहीं करते। अगर लालटेन के लेकर निकलें तो शायद ही कोई चेहरा ऐसा मिलेगा जो हिन्दी की रक्षा,सुरक्षा के जज़्बे के लबरेज़ न हो। मसला तो यही है कि हिन्दी को बचाना तो हर कोई चाहता है बस अपनाना नहीं चाहता। घोषणाएं करना कितना आसान है वेा मंच पर तालियों की ध्वनियों को सुनते हुए आज तक हिन्दी को करतल ध्वनियां ही तो मिली हैं।
इन दिनों हिन्दी का महाकुंभ लगा हुआ है। जिसे देखिए वहीं महा स्नान करना चाहता है। लोटी डोरा, तान तमूरा लेकर भागे जा रहा है मध्य देश, ह्रदय देश में। महाकुंभ का एक छींटा भी पड़ जाए तो जिंदगी सफल हो जाए। जिसे देखिए वही सेल्फी में लगा है। किसी नामी गिरामी के कंधे पर सिर टिकाए मुसकराते सेल्फी हर तरफ चमक रहा है। अगर नही ंचमक रही है तो वह हिन्दी।
हिन्दी को कौन बचाएगा? हम बचाएंगे हम बचाएंगे। हिन्दी की रक्षा कौन करेगा? हम करेंगे हम करेंगे। घर कौन फूंकेगा? हम क्यों फूंकेंगे हम क्यों फूंकेंगे। अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में कौन पढ़ने भेजेगा? हम नहीं भेजेंगे हम नहीं भेजेंगे। यह तो हाल है। हिन्दी के स्वनामधन्यों के बच्चे क्या सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते हैं? क्या उनके बच्चे अपने बापू की तरह हिन्दी की सेवा करना चाहते हैं? नहीं नहीं!! यह मजाक हमसे न करो।
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