सरकारी नौकरी में नियुक्ति के दिन ही अवकाश की तिथि भी सर्विस बुक में दर्ज कर दी जाती है। यह अलग बात है कि उस सर्विस बुक को एक कर्मचारी पूरी जिंदगी ढोता रहता है और पता भी नहीं चलता कब अवकाश प्राप्ति के दिन आ गए। अवकाश प्राप्ति के कुछ वर्ष जब बचते हैं यानी दस या छः साल तब कर्मचारी को एहसास होने लगता है कि अब अवकाश के दिन करीब हैं। तब उसे अपनी शेष जिम्मेदारियों के अधूरेपन का भी एहसास होने लगता है। अभी तो बच्चा पढ़ ही रहा है। बच्ची की भी शादी अभी रहती है। अपना मकान भी नहीं बन पाया आदि। देखते ही देखते कब सर्विस के साल पंख लगा कर उड़ जाते हैं इसका इल्म ही नहीं होता। छरहरा बदन, काले बाल, सपनों से भरी आंखों के साथ कोई अपनी जिंदगी में नौकरी की शुरुआत करता है। पंद्रह बीस साल गुजर जाने के बाद वह ठहरने सा लगता है। जम सा जाता है। जब अवकाश के दिन करीब आने लगते हैं तब वह लेखाजोखा करता है कितने काम शेष रहते हैं। सरकारी नौकरी में तो एक बार नियुक्त होने के बाद गोया कर्मचारी लंबे तान कर सो सा जाता है। उम्र का एक बड़ा हिस्सा निश्चितता में ही कट जाती है। क्योंकि कोई भी उन्हें नौकरी से नहीं निकाल सकता जबतक कि कोई ऐसा अपराध न करें जिसके लिए नौकरी से हाथ धोनी पड़े। लेकिन सरकारी नौकरी के समानांतर ही निजी कंपनियों में खटने वाले कर्मचारियों के विधि विधान ज़रा अलग होते हैं। कब कौन नियुक्त होता है और कब आनन फानन में निकाल दिया जाता है यह भी दिलचस्प होता है। निजी कंपनियों में जिस तरह से नौकरी पैकेज पर सहमति बनती है नौकरी की शर्तंे तय होती हैं उसका टूटन भी उसी शिद्दत से होता है। रातों रात कर्मचारियों को बाहर का रास्ता भी दिखाया जाता है।
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Friday, September 11, 2015
अवकाश की तिथि
सरकारी नौकरी में नियुक्ति के दिन ही अवकाश की तिथि भी सर्विस बुक में दर्ज कर दी जाती है। यह अलग बात है कि उस सर्विस बुक को एक कर्मचारी पूरी जिंदगी ढोता रहता है और पता भी नहीं चलता कब अवकाश प्राप्ति के दिन आ गए। अवकाश प्राप्ति के कुछ वर्ष जब बचते हैं यानी दस या छः साल तब कर्मचारी को एहसास होने लगता है कि अब अवकाश के दिन करीब हैं। तब उसे अपनी शेष जिम्मेदारियों के अधूरेपन का भी एहसास होने लगता है। अभी तो बच्चा पढ़ ही रहा है। बच्ची की भी शादी अभी रहती है। अपना मकान भी नहीं बन पाया आदि। देखते ही देखते कब सर्विस के साल पंख लगा कर उड़ जाते हैं इसका इल्म ही नहीं होता। छरहरा बदन, काले बाल, सपनों से भरी आंखों के साथ कोई अपनी जिंदगी में नौकरी की शुरुआत करता है। पंद्रह बीस साल गुजर जाने के बाद वह ठहरने सा लगता है। जम सा जाता है। जब अवकाश के दिन करीब आने लगते हैं तब वह लेखाजोखा करता है कितने काम शेष रहते हैं। सरकारी नौकरी में तो एक बार नियुक्त होने के बाद गोया कर्मचारी लंबे तान कर सो सा जाता है। उम्र का एक बड़ा हिस्सा निश्चितता में ही कट जाती है। क्योंकि कोई भी उन्हें नौकरी से नहीं निकाल सकता जबतक कि कोई ऐसा अपराध न करें जिसके लिए नौकरी से हाथ धोनी पड़े। लेकिन सरकारी नौकरी के समानांतर ही निजी कंपनियों में खटने वाले कर्मचारियों के विधि विधान ज़रा अलग होते हैं। कब कौन नियुक्त होता है और कब आनन फानन में निकाल दिया जाता है यह भी दिलचस्प होता है। निजी कंपनियों में जिस तरह से नौकरी पैकेज पर सहमति बनती है नौकरी की शर्तंे तय होती हैं उसका टूटन भी उसी शिद्दत से होता है। रातों रात कर्मचारियों को बाहर का रास्ता भी दिखाया जाता है।
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