Wednesday, January 15, 2014

हम न मरब मरीहें संसारा


हम में से कितने ऐसे हैं जो सोचते हैं कि वो नहीं मरेंगे। तकरीबन सब यही सोचतते हैं कि हमें तो मरना ही है। आज या कि कल। मरना तो चींटी भी नहीं चाहती। संसार का कोई भी प्राणी भला क्यों मरना चाहेगा यहां कि सुख सुविधा और चाक चिक्य को छोड़ कर अज्ञात स्थान में क्यों जाना चाहेगा। फिर ये कबीर को क्या हो गया? उन्होंने ऐसी बात क्यों लिखी कि हम न मरब। मरीहैं संसार। कुछ तो दर्शन विमर्श रहा होगा कबीर के अंदरूनी जगत में।
हां पंच तत्व तो पंच तत्वों मे मिल जाएंगे। भौतिक मौत तो हो जाएगी। शरीर तो खत्म हो जाएगा। लेकिन जनाब जिससे प्रेम किया। वो तो प्रेम बरकरार रहेगा। वो तो आपके लिए नम होगी या होगी। ऐसे में आप लोगों के दिलो दिमाग में बसे ही रहेंगे। किसी से उधार लिया, किसी को जीवन भर खूब कोसा, गालियां दीं। तरक्की के लिए किसी को धकेला। भाई का हक हडप लिया जो जीवन भर किया वह तो आपके जाने बाद भी बना रहेगा। कम से कम मरनी पर न बोलें लोग लेकिन बाद में तो बोलेंगे ही। स्याला फलां फलां को बहुत सताया।
अच्छी व बुरी दोनों ही स्मृतिया ंहम अपने पीछे छोड़ जाते हैं। जो नहीं जाता साथ वह आपका जीवन भर का रुपया पैसा नहीं जाता। जो साथ जाता है वह बस आप ही होते हैं। आपके साथ न सहोदर, सहोदरी जाती है न पिता-माता, पत्नी, प्रेमिका कोई भी तो नहीं जाता। जाता है निपट अकेला लंगड़ा सुपना।
जीवन के विस्तार और लंबी सड़क पर हमें तय करना होता है कि हमें कहां तक जाना है। जाने क रास्ते भी खुद ही तय करने होते हैं। अपने लिए मंजिल भी हमें ही चुनना होता है। यह अलग बात है कि कभी कभी मंजिल आपको चुनती है। लेकिन यह तो तय करना ही होगा कि हमारी अपनी सीमाएं क्या हैं और हम कहां तक क्या कर सकते हैं। क्योंकि मरने के बाद कोई नहीं पूछने वाला कि आपने फलां काम अधूरा क्यों छोड़ दिया। वैसे कहने वाले कहते हैं कम से कम बेटी का ब्याह तो कर जाता। बेचारी पर डाल कर चला गया। तो सुनना तो पड़ेगा ही। कबीर ने गलत नहीं कहा मरीहैं संसारा। हमारे लए संसार मरेगा। यानी संसार को जो आपने परेशान किया उसके लिए लोग आपको कोसेंगे। जिसके लिए आप मरे वो आपके लिए मरेगा।

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