Tuesday, January 14, 2014

टोल के बाद की सड़क


कौशलेंद्र प्रपन्न
जी यदि आप दिल्ली छोड़कर हरियाणा, यूपी या उत्तरा खंड़ की ओर निकलते हैं तब एक अलग दुनिया से वास्ता पड़ता है। नोएडा से आगरा एक्सप्रेस वे पर दौड़ना जितना मजा आता है वह मजा किर किरा तब होता जाता है जब मथुरा, वृंदावन, आगरा की देसी सड़कों पर उतरते हैं। वही मंजर हरियाणा के बहादुरगढ़ छोड़ते झझ्झर की ओर निकलते हैं तब भी कमाल की सड़क मिलती है। लेकिन जैसे ही प्रतापगढ़ की ओर मुड़ते हैं वैसे ही सड़क का सौंदर्य जाता रहता है। चलिए गाजियाबाद की ओर से हरिद्वार की ओर ले चलते हैं। राज नगर एक्सटेंशन तक रोड़ वाकई अच्छी है। जैसे ही मोदी नगर और मुरादनगर की ओर दौड़ते हैं तब सड़क का समाज शास्त्र का दर्शन होता है। मुजफ्फरनगर से रूड़की की ओर निकलते हैं तब टोल रोड़ पर सरपट दौड़ते हुए कुछ ही घंटों में रूड़की पहुंच जाते हैं। लेकिन रास्ते में जैसे ही टोल रोड़ खत्म होता है वैसे ही गांव की या कहें कस्बाई सड़कों से रू ब रू होते हैं।
तेज रफ्तार के लिए हम ज्यादा पैसे देते हैं। तब जाकर वैसी सड़कें मुहैया होती हैं। वहीं एक सवाल यह भी उठता है कि क्या हम आम सड़कों के लिए पैसे नहीं देते? क्या हम सालाना रोड़ टैक्स नहीं भरते? यदि भरते हैं सरकार की जेब तो फिर टोल वाली रोड़ जैसी आम सड़कें आम जनता को क्यों नहीं मिलतीं। फ्लाईओवर, टोल रोड़ और सबवे की ज्यूं पूरे देश में बाढ़ सी आ गई है। जिस भी शहर को देखों विकास की दौड़ में अपनी पहचान एवं सौंदर्य की कीमत चुका रहे हैं। मुजफ्फरनगर से जैसे ही रूड़की की ओर बढ़ते हैं वैसे की प्रकृति के की जा रही छेड़छाड़ के नजारे दिखाई देंगे। सड़क के दोनों ओर हजारों पेड़ काटे जा रहे हैं। काट काट कर बुग्गी, टैक्टर आदि में भरे जा रहे हैं। पूछने पर पता चला रोड़ चैड़ी की जा रही है। दरअसल पैसे वसूलने के बहाने निकाले जा रहे हैं। टोल का बिस्तार होना है। हम खुश होंगे कि कम समय में हरिद्वार आदि शहरों में पहुंच सकते हैं। सवाल सामने यही है कि इसके लिए प्राइवेट कंपनियों को आम सड़कें देने का क्या तुक है। क्या सरकार अपने आप को इस काम के लिए असमर्थ मान चुकी है। शायद इसी का नाम है पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशीप पीपीपी। आज यह माडल तकरीबन हर सार्वजनिक क्षेत्रों में देखा जा सकता है। वह चाहे शिक्षा, स्वास्थ्य, जन सेवाएं ही क्यों हों।
सड़क पर चलने और सुरक्षित चलने का अधिकार हर नागरिक को है। अपनी मंजिल तक सुरक्षित और स्वस्थ्य पहुंचे इसकी जिम्मेदारी हर राज्य सरकार की भी उतनी ही है जितनी केंद्र सरकार की। मगर आज पीपीपी माडल पर हर क्षेत्र में प्रवेश कर रही हैं वह एकबारगी गलत नहीं तो पूरी तरह से उपयुक्त भी नहीं हैं। जिन सड़कों को बनाने व टोल रोड़ बनाने की जिम्मेदारी दी गई क्या उनकी क्रेडिबिलिटी भी परखी गई हैं? क्या वे जिस तरह की सड़कें भारत में बना रहे हैं वह भारतीय गाडि़यों के लिए उपयुक्त हैं आदि ऐसी वास्वकिताएं जिन से मंुह नहीं मोड़ सकते।
रूड़की के बाद जैसे ही हरिद्वार की ओर मुड़ते हैं वैसे ही बादराबाद के बाद सड़के के दोनों तरफ विकास के चिह्न दिखाई देते हैं और दिखाई देने लगता है शहर के सौंदर्यबोध का कत्ल जारी है। गंगा नहर के दोनों ओर लंबे और उंचे यूकलिप्टस के पेड़ सालों सालों से खड़े थे। जो शहर और नहर दोनों को एक बेहतरीन रूप देते थे। लेकिन गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय से लेकर श्रद्धानंद द्वार और प्रेमनगर आश्रम होते हुए डैम तक सारे पेड़ काटे जा चुके हैं। देखने में एक बारगी बियाबान, पेड़ विहीन सड़कों को जन्म दिया जा रहा है।

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