आज ही के दिन भारत के धर्निर्पेचता के धज्जी उडी थी। जी सही समझ रहे हैं। अगर नही पल्ले पड़ा तो ज़रा मेमोरी पर सर्च बटन प्रेस कीजिये। हाँ अब आपके मेमोरी के सेर्फस पर दिसम्बर ६ १९९२ उभरा होगा। साथ ही खून से लाल सरयू नदी भी खामोश दिख रही होगी। सरयू का पानी लाल होगा। इस के साथ ही सरिया, तोड़ फोड़ के आवाज़ भी सुनाये दे रही होगी।
बस अब आप देख सकते हैं, अजी साहिब ज़रा कानो को साफ करे तो वह आवाज़ भी सुन सकते हैं, जय श्रीराम मन्दिर वहीं बनायेंगे.... जो राम का नाम नही लेगा वो हिन्दुस्ता का काफ़िर है। अब मथुरा की बारी है। और लोग नारे लगा कर अपनी पौरुश्ता का प्रमाण दे रहे थे। साथ ही हिंदू होने के निकष भी दुनिया के सामने रख रहे थे। मीडिया की नज़रें उत्तर प्रदेश के सस्र्यु के तट पर टिके थे।
देखते ही देखते गुम्बद सदियों से धुप , पानी , धुल फाक रहा था। आज उसे सचे हिंदू भीड़ ने ज़मिन्दोस्त कर दिया। चलिए साहिब गुम्बद को अब रहत मिली या नही पर कुछ लोगों के आत्मा ज़रूर शांत हुई। मगर अभी उनकी मुराद पुरी नही हुई है। उन्होंने तो देश के हिंदू समाज को वचन दे रखा है की जब तक राम लाला का मन्दिर नही बन जाता तब तक हम कैसे कह सकते हैं गर्व से कहो हम हिंदू हैं। अभी आगे की लड़ाई बाकि है।
इन्ही दिनों लिब्राहन कमिटी की रोपोर्ट संसद में रख दी गई , लेकिन उस पर चर्चा होना बाकि था। मगर अगले दिन मीडिया में आयोग की रिपोर्ट प्रकाशित हो गई। बीजेपी के नेतायों को इक मुद्दा मिल गया की यह कांग्रेस की चाल है। कुछ स्टेट में इलेक्शन होने हैं इसी को ध्यान में रख कर रिपोर्ट लीक की गई।
बहरहाल, बहस तो संसद में होगी ही। मगर ध्यान देने की बात यह है की जब यह घटना को अंजाम दिया जा रहा था उस टाइम सेण्टर में कांग्रेस की सरकार थी। नर्शिन्घा राव प्रध्यान्मंत्री थे। उन्होंने लापरवाही की। इस को कोई झुठला नही सकता। मग राव sahib के समिति बा इज्ज़त बरी कर देती है। समिति की रिपोर्ट जो भी हो। इक बात साफ है, सरकारें बदलती हैं, पार्टी के चहरे बदल सकते हैं। मगर राम लाला की ज़मी पर लाखों लोगों की खून से सनी ६ दिसम्बर १९९२ नही बदल सकती। सरयू में जल मग्न तमाम चहरे आज भी अपने गावों की तरफ़ आस लगाये टुकुर टुकुर देख रही हैं.
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