कौशलेंद्र प्रपन्न
शिक्षा को अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए पल प्रति पल संघर्ष करने पड़ते हैं। वह किसी भी देश, भूगोल की शिक्षा हो, उसे शैक्षिक-अस्तित्व को जिं़दा रखने के लिए विभिन्न किस्म की चुनौतियों (राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक) से रू ब रू होना पड़ता है। इन्हीं संघर्षों के बीच शिक्षा को अपने रास्ते भी बनाने पड़े हैं। शिक्षा और शिक्षण संस्थानों को हमेशा से ही राजनीतिक और सामाजिक साथ ही युद्ध आदि में एक सशक्त औजार के रूप में इस्तमाल किया जाता रहा है। इतना ही नहीं बल्कि स्कूल से लेकर कॉलेज और विश्वविद्यालयों को शिक्षा-शिक्षण से एत्तर सामाजिक आंदोलन के सूत्रधार के तौर पर देखा और स्वीकारा गया है। विश्व के तमाम देशों में स्कूल और स्कूली बच्चों को कई बार युद्ध में एक सस्ते सैनिक के तौर पर इस्तमाल किया गया। शिक्षा भारत की हो या सोमालिया, नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान, अफगानिस्तान आदि इन संघर्ष और यृद्ध के कगार पर खड़े देशों में शिक्षा को शिकार बनाया गया है। हमारा पड़ोसी देश नेपाल व पाकिस्तान एवं श्रीलंका आदि को समझने की कोशिश करें तो पाएंगे कि इन देशों में स्कूल और स्कूली बच्चों को हमेशा निशाना बनाया गया। कौन भूल सकता है जब पाकिस्तान पर 2014 में स्कूल पर हमला किया गया और बच्चे समेत शिक्षकों की मौत हो गई। वहीं नेपाल में सत्ता परिवर्तन के दौरान बल्कि कहें राजतंत्र से लोकतंत्र की ख़ूनी यात्रा में लाखों बच्चे शिक्षकों को निशाना बनाया गया। सेव द चिल्ड्रेन से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ की तमाम शोध बताते हैं कि इन संघर्षों और युद्ध आशंकित क्षेत्र में बच्चे स्कूल छोड़ युद्ध में जोत दिए गए।
हाल ही में डॉ संजीव राय द्वारा अंग्रेजी में लिखी पुस्तक ‘‘कॉन्फल्क्टि, एजूकेशन एंड द पीपल्स वॉर इन नेपाल’’ आई है। समीक्ष्य पुस्तक बड़ी ही शिद्दत से नेपाल में प्राथमिक शिक्षा, स्कूल, शिक्षक, बच्चे और जनांदोलन की जिं़दा तसवीर प्रस्तुत करती है। संजीव राय ने इस पुस्तक में जिस गहनता से नेपाल से जनांदोलन जिसे हम राजसत्ता से लोकसत्ता की विकास यात्रा कह सकते हैं, इसकी ऐतिहासिक साक्ष्यों के मद्दे नज़र विश्लेषण प्रस्तुत करते हैं। 1992, 1995 से लेकर 2007 और 2009 तक की इस लोकतांत्रिक विकास यात्रा को न केवल शैक्षिक लेंस से देखने, समझने की कोशिश की है बल्कि संजीव इस किताब में शिक्षा की यात्रा को सामाजिक एवं राजनैतिक विकास और इतिहास से भी जोड़ते हुए समझना और उन बारीक तंतुओं को पकड़ने का प्रयास करते हैं जिन्हें सुलझाए बिना हम नेपाल की बुनियादी शिक्षा यानी प्राथमिक शिक्षा एवं लोकतंत्र की स्थापना को समझने का दावा नहीं कर सकते।
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