कौशलेंद्र प्रपन्न
कुछ क्यों रह जाते हैं। कुछ क्यों छूट जाता है, कभी हमने इसपर ठहर कर नहीं सोचा। अक्सर हम अपनी बातें बिना सोचे समझे और समय का ध्यान रखे कहने में लग जाते हैं। हम कहते बहुत हैं। मगर फिर भी कुछ शिकायतें रह ही जाती हैं। काश और वक़्त मिला होता तो अपनी पूरी बात रख पाता। जैसे परीक्षा देने बैठा बच्चा कहता है, आता तो सब था लेकिन कापी छीन ली। वक़्त ही नहीं बचा। थोड़ा और समय मिल जाता तो सारे सवाल कर लेता। लेकिन जिं़दगी में परीक्षा लेने वाला भी कभी ज़्यादा समय नहीं देता। जितना समय तय है उसमें ही अपनी बात कहनी होती है।
दरअसल कल मेट्रो में कुछ लड़कियों को अपने दोस्तों से बातचीत करते सुना वैसे किसी की बात को सुनना ठीक नहीं है लेकिन कानों पर पड़े तो सुन लिया। लड़की कह रही थी यार टाइम ही नहीं मिलता। घर पर आने के बाद पढ़ ही नहीं पाती। आदि उसकी बातों को बाकी के दोस्त समर्थन कर रहे थे। मैं सोचने लगा यदि छात्र के पास पढ़ने के लिए समय नहीं है तो किस चीज के लिए समय है। क्या केवल सोशल मीडिया पर छाने, सेल्फी पोस्ट करने आदि का समय है।
सच में हम अकसर बातचीत में शिकायत करते हैं कि यार समय नहीं है। समय नहीं मिलता आदि। दरअसल यह एक बहाना है। यदि हम अपने टाइम को मैनेज करें तो सब कुछ संभव है। दिक्कत यही आती है कि हम अपने समय और धन दोनों को ही समयोचित मैनेज नहीं कर पाते। यही लापरवाही हमें परीक्षा में पेपर लिखते हुए भी महसूस होती है। हम लिखते चले जाते हैं। इसे रफ्तार में कई सवाल अधूरे रह जाते हैं या फिर छूट ही जाते हैं। जीवन में भी हम अपने समय को ठीक से मैनेज नहीं कर पाते इसलिए हमारे सपने और काम दोनों ही अधूरे रह जाते हैं।
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