कौशलेंद्र प्रपन्न
शिक्षा और परीक्षा दो पाटन के बीच में बच्चे साबूत नहीं बचे। यह सिलसिला जमाने से बतौर जारी है। लेकिन हालिया घटनाएं बताती हैं कि शिक्षा अब डराने लगी है। परीक्षा तो उससे भी एक कदम आगे बढ़ चुकी है।
शिक्षा के बारे में माना जाता है कि यह इनसान को बेहतर बनाती है। लेकिन हक़कीतन ऐसा नहीं है। बच्चे आत्महत्या करते हैं तो इसमें शिक्षा भी कहीं बदनाम होती है। क्योंकि शिक्षा मृत्यु नहीं बल्कि जीना सीखाती है। बेहतर जीने की कला देती है ऐसा माना गया है।
परीक्षा का भय हमारे बच्चों में इस कदर धंस बैठ चुकी है कि निकाले नहीं निकलती। परीक्षा के भय को दूर करने के लिए कभी परीक्षा को ही खत्म किया गया। कभी बहुवैकल्पिक सवालों का युग आया। बच्चों को फेल न करने की पहलकदमी की गई। लेकिन परिणाम वहीं ढाक के तीन पात। बच्चे मरते रहे और मारते भी रहे।
इन घटनाओं में कहीं न कहीं हमारे शिक्षा के नीति निर्माता की भूमिका को नजरअंदाज नहीं कर सकते। समय समय पर शिक्षा की बेहतरी के लिए कई कदम उठाए गए। लेकिन क्या वजह है कि परीक्षा और शिक्षा का भय बच्चों से दूर नहीं हुआ।
परीक्षा जब शिक्षा पर भारी पड़ने लगती है तब शिक्षा के उद्देश्य पीछे रह जाते हैं। हमें यह तय करना होगा कि हम बच्चों को शिक्षित करना चाह रहे हैं या परीक्षा में पास करने के कौशल प्रदान कर रहे हैं। यदि महज परीक्षा पास करना और अंक हासिल करना मकसद है तो वह कई अन्य तरीकों से भी यह पूरा किया जा सकता है। लेकिन शिक्षा से मुहब्बत करना हमारा उद्देश्य है तो हमें अपने तरीकों पर ठहर पर सोचना होगा।
परीक्षा के मौसम आने वाले हैं। बच्चों पर इसका दबाव अभी से महसूसा जा सकता है।बल्कि अभिभावकों के तनाव स्तर को भी सहज ही देखा-सुना जा सकता है।कई अभिभावक अपनी गहरी कमाई ट्यूशन, कोचिंग आदि में दे रहे हैं।उम्मीद तो उनकी यही हैकि उनका बच्चा मेडिकल आदि में निकल ही जाएगा। लेकिन बच्चे से भी पूछने की जरूरत है।
8 comments:
sahi bat hai.
sahi bat hai.
Pradyumn murder case was a result of our failed education system which stresses on monitoring and assessment...There is mad rush to compete and score better ...In this procedure we are neglecting the real aim of education..
And education is not just about exams and marks ,it's about making a sensitive human being too .
उचित ही कहा है। हमने पढ़ा था,'सा विद्या या विमुक्तये...'लेकिन लगता है हम भटक गये हैं। बाजार हावी हो गया है...
शिक्षा की दिशा, शिक्षाविद् की बजाए राजनीतिक तय कर रहे हैं...
बिलकुल सही
aap sab ka shukragujar hun aur abhibhut bhi. aap sab ne apni tipanni dee. padhi aur chupp nahi rahe.
pichle dino maine ik lekh sajha kiya tha jis me maine charcha kee thi jahan kyaa padhayeen yah raajniti tai karti hai shikshavid nahi. chaahen to manish Bhai aap ya lekh padh sakte hain.
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