कौशलेंद्र प्रपन्न
हम साहित्य उत्सव का विकेंद्रीकरण भी कह सकते हैं। इन दिनों बाज़ार में साहित्य फेस्ट के आयोजन का चलन तेजी से बढ़ा है। कभी विश्व पुस्तक मेले में पुस्तक चर्च, पुस्तक लोकार्पण, लेखक-संवाद, ऑथर टाक्स हुआ करते थे। इनमें देश के जाने माने लेखक, संपादक, कवि आदि शामिल हुआ करते थे।
पिछले दिनों आजतक ने भी लिट्रेचर फेस्ट का आयोजन किया। इसमें देश के नामीगिरामी हस्तियों ने हिस्सा लिया। गीतकार, कवि, शायर, लेखक आदि ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। इस उत्सव में नए लेखक भी मंच में दिखाई दिए।
पिछले हप्ते टाइम्स आफ इंडिया ने भी लिट् फेस्ट किया। इसमें शशि थरूर, जावेद अख्तर, शबाना आजमी, बाबा रामदेव आदि को बुलाया। सब ने राष्ट्रवाद, संस्कृति, पद्मावती आदि से लेकर संस्कृति पर हो रहे हमले पर बात की। वहीं पाकिस्तान के साथ हमारे रिश्ते पर भी सत्र में चर्चा हुई।
मैं उस उत्सव में हिन्दी वाली लेखक, कवि, साहित्यकार तलाशता रहा मगर एक भी नजर नहीं आए। वहां जो भी नजर आए वे अंग्रेजीदां किस्म के लोग थे। क्या श्रोता क्या वक्ता सब के सब एक रंग में रंगे। महंगी महंगी किताबें, बंडी, लंबे बाल वाले लोग और फैशन में डबी फेस्ट नजर आई।
हमें विचार इस पर भी करना होगा कि क्या इन फेस्टों से साहित्य की कुछ भी स्थिति सुधरने वाली है। क्या इस फेस्ट से कुछ ख़ास मीडिया घराने महज अपनी दुकान चमकाने की जुगत तो नहीं कर रहे हैं। बाकी आप समझदार हैं!!!
2 comments:
अंग्रेजी दा किस्म के लोग वाह वाह भैया क्या खींची है आपने
स्थिति जितनी जल्दी सुधरे उतना अच्छा ।
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