कौशलेंद्र प्रपन्न
कंपनियों में कई बार कुछ ख़ास व्यक्ति की वजह से लोग कंपनी छोड़ देते हैं। वह व्यक्ति इस कदर परेशान कर देता है कि दूसरों के लिए नौकरी छोड़ना ही विकल्प बचता है।
जब एक व्यक्ति उसमें भी सक्षम और तज़र्बेकार स्टॉफ कंपनी छोड़ता है तब वह केवल उस व्यक्ति की हानि भर नहीं होती बल्कि उस संस्था और कंपनी को भी इसका ख़ामियाजा भुगतना पड़ता है। एक व्यक्ति की वजह से एक कंपनी को एक बेहतर मानव संसाधन से हाथ धोना पड़ता है।
कहते हैं कंपनी व संस्था किसी व्यक्ति से नहीं चलती। सच है कि लेकिन संस्था को बनाने और स्थापित होने में कई लोगों का हाथ होता है। कई बार एक व्यक्ति ही संस्था बन जाता है। इसकी दो संभावनाएं होती हैं। पहला या तो वह तानाशाही हो जाता है या फिर कई संस्थानों को जन्म दे सकता है। जब एक व्यक्ति यह समझने लगे कि संस्था उसी की वजह से चल रही है तब दिक्कत आती है।
लेकिन इतिहास, भूगोल, राजनीतिशास्त्र, शिक्षा आदि क्षेत्र में एक व्यक्ति को संस्था बनते हुए भी देखा गया है। लेकिन उसके बावजूद उन्हें संस्था से बाहर किया गया है।
संस्था व्यक्ति के जाने के बाद भी बतौर जारी रहता है। व्यक्ति चले जाते हैं लेकिन अपनी छाप छोड़ जाते हैं। उनके नाम और काम से संस्थाएं याद की जाती हैं।
संस्थान से किसी का जाना और किसी का आना तो लगा ही रहता है। संस्थाएं न तो रूकती हैं। और न रूक सकती हैं। लेकिन एक व्यक्ति के जाने से संस्था को कुछ तो असर पड़ता ही है। लेकिन एचआर और ऊपर बैठे लोगों को महसूस तक नहीं होता कि उन्होंने क्या खोया और क्या पाया। जिस सैलरी पर पहला व्यक्ति था संभव है उसके स्थान पर आने वाला उन्हें उससे कम लागत में मिल जाए किन्तु पहले वाले को स्थानांतरित नहीं कर सकता। उसकी शैली की कापी नहीं कर सकता। वैसे भी गुणवत्ता से आज किसी भी कोई ख़ास लेना देना नहीं होता। आप कितना काम करते हैं इससे अंतर नहीं पड़ता बल्कि आप कितना अपने काम को दिखा पाते हैं, यह ज्यादा जरूरी होता है।
कंपनियों में काम करने से ज्यादा दिखाने का चलन होता है। काम कम दिखावा ज्यादा। एक बॉस की वजह से यदि कोई संस्था छोड़ता है तो यह एक बड़ी घटना मानी जा सकती है।
3 comments:
I completely agree with KP.
गुणकारी व्यक्ति तभी ग्रुप या संस्था छोड़ता है जब वह आहत होता है और उसे रहने की कोई वजह नहीं दिखती...
agreed
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