इक थी पूजा। वो खूब पढना चाहती थी लेकिन उसकी किस्मत में शायद पढना नहीं लिखा था। पिछले दिनों उससे मुलाक़ात ही हुई थी। कहा मैं पढना चाहती हूँ। बड़े हो कर पढ़ना चाहता है मेरी। वो यूँ तो खामोश रहती लेकिन जवाब आते हुए भी जवाब नहीं डरती थी। बोहोत बोलने पार जवाब देती। रंग तो जैसे उसकी ऊँगली पर नाचती थी क्या ही कमाल कि चित्रकारी करती।
कुछ दिन मुलाक़ात नहीं हुई। इक दिन अचानक नज़र आई । उसके दोस्तों ने कहा इसकी माँ कल रात भवान के पास चली गई। मायूस पूजा चुपचाप देख रही थी कभी उन क्लास को ज़हन में जिसे बसा रखा था। सुए लग गया था कि बस अब ज्यादा दिन यहाँ न आना हो पायेगा।
हुवा भी वही जिसका दर था। पियाकड़ बाप ने उसे किसी कोठी वाले के घर चौका बर्तन के लिए रख दिया। हम चाह कर भी उसे शिक्षा में रोक नहीं पाए। उसके सपने खतम हो गए। असमयेक मौत
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