रिलोकेशन केवल जगह तक महदूद नहीं है। बल्कि पहचान और लोगों के बीच भी हम माइग्रेट सी ज़िंदगी बसर किया करते हैं।
हम अपनी इसी ज़िन्दगी में कई कई पल, सांसों को भर लेते हैं।
कभी भी हम वैसी जगह पर खुश नही राह पाते जहां कोई पहचानने वाला न हों।
हमारे बुज़ुर्ग नई जगह समायोजित नहीं हो पाते। उन्हें महसूस हिया है कि वी अकेले रह गए। कोई पूछता नहीं। तव्वजो नही देता।
जिस जगह उम्र के बड़े हिस्से को जीया, जिनके साथ सुख दुख साझा किए लेकिन जब कुछ चेहरे पहचान वाले हों आस पास तब कहीं और कैसे चला जाये।
शायद जिनके बीच रवादारी रही है उन्हीं के बीच ही मरना भी चाहते हैं
हम अपनी इसी ज़िन्दगी में कई कई पल, सांसों को भर लेते हैं।
कभी भी हम वैसी जगह पर खुश नही राह पाते जहां कोई पहचानने वाला न हों।
हमारे बुज़ुर्ग नई जगह समायोजित नहीं हो पाते। उन्हें महसूस हिया है कि वी अकेले रह गए। कोई पूछता नहीं। तव्वजो नही देता।
जिस जगह उम्र के बड़े हिस्से को जीया, जिनके साथ सुख दुख साझा किए लेकिन जब कुछ चेहरे पहचान वाले हों आस पास तब कहीं और कैसे चला जाये।
शायद जिनके बीच रवादारी रही है उन्हीं के बीच ही मरना भी चाहते हैं
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