कौशलेंद्र प्रपन्न
सरकार जब शिक्षा में मुकम्मल गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दे पा रही है तब ऐसे में नागर समाज के अन्य घटक आगे आ रहे हैं। उनमें कुछ एनजीओ, सीएसआर आदि की कोशिशों को लंबे समय तक नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। सरकार पिछले कई दशकों से शिक्षा में गुणवत्ता हासिल करने में लगातार विफल होती रही है। इसके प्रमाण गजट ऑफ इंडिया के दस्तावेज़ हैं।
देश के विभिन्न राज्यों में शिक्षा प्रशिक्षण संस्थानों में किस प्रकार की तालीम दी जा रही है इसका अंदाज़ लेना हो तो किसी भी सरकारी व कई बार गैर सरकारी स्कूलों की कक्षाओं में झांकने का अवसर लीजिए और देखें। देखेंगे कि शिक्षक किस शिद्दत से अपने कंटेंट के साथ न्याया कर रहा है।
अव्वल तो शिक्षकों की जबानी कई बार सुनने को मिलती है कि उन्हें पढ़ने का मौका नहीं मिलता। अरसा हुआ कुछ नई किताबों को पलटे हुए। जब पढ़ाई किया करते थे तब पढ़ते थे लेकिन उसका मकसद परीक्षा पास करना था। जब से सेवा में आए पढ़ाई छूट गई। टूट गई किताबों से रिश्ता। यह मेरा कहना नहीं है बल्कि शिक्षकों की कही और स्वीकारी बातें हैं।
टेक महिन्द्रा फाउंडेशन के द्वारा पूर्वी दिल्ली नगर निगम के स्कूलों को केंद्र में रखते हुए संचालित अंतः सेवाकालीन अध्यापक शिक्षा संस्थान लगातार छह वर्षां से शिक्षक सेवाकालीन प्रशिक्षण में लगी हुई है। इसका परिणाम यह हुआ कि शिक्षक अपनी कक्षाओं में नए शिक्षण विधियों और शास्त्रों का प्रयोग कर रहे हैं। यह संख्या और गुणवत्ता अभी हमारी आंखों से ओझल है लेकिन अब और नहीं छुप सकतीं। जब आप काम किया करते हैं वो भी सरकार की जिम्मेदारियों के समानांतर तो वो कईबार अपनी निहितार्थां की वजह से ओझल रखने का खेल भी खेला जाता है।
आज की तारीख़ी हक़ीकत है कि देश भर में सेवापूर्व प्रशिक्षण संस्थान तो हैं लेकिन सेवाकालीन शिक्षकों को शिक्षा-शास्त्र और शिक्षण कौशलों पर हाथ थामने वाले बेहद कम हैं। उनमें टेक महिन्द्रा फाउंडेशन का यह प्रयास किसी भी कोण से कमतर नहीं है। जबकि यह काम सरकार को करने थे। लेकिन सीएसआर गतिविधि के तहत टेक महिन्द्रा फाउंडेशन न केवल दिल्ली बल्कि अन्य राज्यों में भी बच्चों में दक्षता और मेडिकल प्रोफेशनल तैयार करने में जुटी है। हालत यह है कि बच्चे प्रशिक्षण और हुनर हासिल कर देश के जानेमाने अस्पतालों और अन्य क्षेत्रों में अपनी भविष्य तलाश रहे हैं और बना चुके हैं।
सच पूछा जाए तो शिक्षा वह कोना है जहां समाज को झांकना चाहिए लेकिन यही कोना एक सिरे से उपेक्षित भी है। यही वजह है कि नागर समाज के लोग और कंपनियां अपनी जिम्मेदारियां निभाने में पीछे नहीं हैं। हमें खुले मन और दिल से ऐसे प्रयासों को न केवल स्वीकारना चाहिए बल्कि एक कदम आगे बढ़कर अपनी जिम्मेदारी को भी निभाने के लिए समानांतर आगे आना ही शिक्षा को बेहतर स्तर पर ले जा सकती है।
No comments:
Post a Comment