सत्तर पार के शिक्षकों से समूह में मिलना एक अलग एहसास से भर देता है।
जिसके प्रयास से हम क्या देश, क्या विदेश हर जगह अपनी छाप छोड़ा करते हैं। वही शिक्षक अपने उम्र के सातवें दशक में लाचार हो जाता है। भूलने लगता है। घर- समाज में कई बार उपेक्षित भी होते हैं। लेकिन उसमें उनका क्या दोष। यह उम्र का तकाजा है।हर किसी को इस दौर से गुजरना होगा।
जिन शिक्षकों की तालीम के आधार पर हम और हमारी पर्सनालिटी आकार लिया करती हैं।
शिक्षकों, प्रिंसिपल सब ने स्वीकार किया कि इस उम्र में भी हम समाज को कुछ दे सकते हैं। सब के सब अपने तज़र्बा साझा कर रहे थे। उन्हें हौसला बढ़ाने के लिए कुछ सफल कहानियां सुनाई। इससे कुछ देर के लिए ही सही रोशनी भी मिली।
जिसके प्रयास से हम क्या देश, क्या विदेश हर जगह अपनी छाप छोड़ा करते हैं। वही शिक्षक अपने उम्र के सातवें दशक में लाचार हो जाता है। भूलने लगता है। घर- समाज में कई बार उपेक्षित भी होते हैं। लेकिन उसमें उनका क्या दोष। यह उम्र का तकाजा है।हर किसी को इस दौर से गुजरना होगा।
जिन शिक्षकों की तालीम के आधार पर हम और हमारी पर्सनालिटी आकार लिया करती हैं।
शिक्षकों, प्रिंसिपल सब ने स्वीकार किया कि इस उम्र में भी हम समाज को कुछ दे सकते हैं। सब के सब अपने तज़र्बा साझा कर रहे थे। उन्हें हौसला बढ़ाने के लिए कुछ सफल कहानियां सुनाई। इससे कुछ देर के लिए ही सही रोशनी भी मिली।
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